51 शक्ति पीठों की यात्रा: एक धार्मिक अनुभव

Vineet Bansal

आज हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं 51 शक्ति पीठों की यात्रा के बारे में। अब हम आपसे 51 शक्ति पीठों की यात्रा के बारे में बात करें तो 51 शक्ति पीठ देवी सती के अंगों, वस्त्रों और आभूषणों के गिरने के स्थान को कहा जाता हैं।

यह स्थान देवी दुर्गा के अलग-अलग रुपों को समर्पित हैं और हिंदू धर्म में यह महत्तवपूर्ण धार्मिक स्थल माने जाते हैं। अब हम आपसे चर्चा करेंगे 51 शक्ति पीठ क्या हैं? 

51 शक्ति पीठ क्या हैं?- 51 shakti pith kya hain?

अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं 51 शक्ति पीठों के बारे में बात करें। अब हम आपसे 51 शक्ति पीठों के बारे में बात करें तो 51 शक्ति पीठ देवी सती के अंगों, वस्त्रों और आभूषणों के गिरने के स्थान को कहा जाता हैं।

51 shakti pith kya hain

यह स्थान देवी दुर्गा के अलग-अलग रुपों में समर्पित हैं और हिंदू धर्म में यह स्थान महत्तवपूर्ण धार्मिक स्थल माने जाते हैं। यहाँ 51 शक्ति पीठों की सूची निम्नलिखित हैं:- 

कामाख्या (गुवाहाटी, असम)

कालिका (कलकत्ता, पश्चिम बंगाल)

त्रिपुरमालिनी (उडुपी, कर्नाटक)

श्रीशैल (आंध्र प्रदेश)

कांची (तमिलनाडु)

कौशिकी (विशालक्ष्मी, मुंगेर, बिहार)

करवीर (कोल्हापुर, महाराष्ट्र)

काश्मीरी (जम्मू और कश्मीर)

चामुंडा (हिमाचल प्रदेश)

ज्वालामुखी (हिमाचल प्रदेश)

शक्ति (विंध्याचल, उत्तर प्रदेश)

वैकाल (उत्तराखंड)

शिरकलाई (पाटन, गुजरात)

विष्णु देवी (कटरा, जम्मू)

जयन्ती (नैनीताल, उत्तराखंड)

विमला (पुरी, ओडिशा)

कमरूप (गुवाहाटी, असम)

सुपर्णा (त्रिपुरा)

भीमेश्वरी (भीमपुर, नेपाल)

हरिद्रिका (हरिद्वार, उत्तराखंड)

उज्जयिनी (उज्जैन, मध्य प्रदेश)

चन्द्रभागा (राजस्थान)

मंगलावती (राजस्थान)

रमा (गुजरात)

वह्नि (नेपाल)

अत्मरुप (अलवर, राजस्थान)

भील (उज्जैन, मध्य प्रदेश)

पारला (पंजाब)

महालक्ष्मी (महाराष्ट्र)

महाकाली (उज्जैन, मध्य प्रदेश)

वृषबनंदिनी (हिमाचल प्रदेश)

महाशक्ति (महाराष्ट्र)

शुक्तिमती (गुजरात)

लम्बिका (ओडिशा)

शिवाणी (सतारा, महाराष्ट्र)

विक्रमशीला (बिहार)

गुहा (गुजरात)

जुगाधि (राजस्थान)

महाशक्ति (राजस्थान)

गुहा (गुजरात)

शिवकांतिका (उज्जैन, मध्य प्रदेश)

गिरीजा (ओडिशा)

कामरूप (गुवाहाटी, असम)

तारापीठ (पश्चिम बंगाल)

महाकाली (गुजरात)

दन्तकाली (नेपाल)

मानसकला (असम)

विरजा (उड़ीसा)

ज्वालामुखी (हिमाचल प्रदेश)

श्रीललिता (सिंध, पाकिस्तान)

कोटिहार (बिहार)

51 शक्ति पीठ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हुए हैं। प्रत्येक स्थान का अपना धार्मिक और ऐतिहासिक महत्तव हैं। विशेष रुप से इन मंदिरों में देवी सती की पूजा नवरात्रि और अन्य हिंदू त्योहारों के दौरान की जाती हैं। अब हम आपसे चर्चा करेंगे 51 शक्ति पीठ के महत्तव और उत्पत्ति के बारे में। 

इसके साथ ही आप यहां पर सनातन धर्म के महान ग्रंथ बजरंग बाण के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

51 शक्ति पीठ का महत्तव और उत्पत्ति- 51 shakti pith ka mahatv aur utpatti

अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं 51 शक्ति पीठ के महत्तव और उत्पत्ति के बारे में। अब हम आपसे 51 शक्ति पीठ के महत्तव और उत्पत्ति के बारे में बात करें तो हिंदू धर्म में शक्ति पीठ अत्यंत पवित्र और महत्तवपूर्ण स्थल हैं जो देवी सती के अलग-अलग अंगों, वस्त्रों और आभूषणों के गिरने के स्थानों के रुप में सम्मानित हैं।

51 shakti pith ka mahatv aur utpatti

51 शक्ति पीठ के ये स्थल देवी दुर्गा के अलग-अलग रुपों की पूजा के लिए समर्पित हैं। अलग-अलग धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में 51 शक्ति पीठों का उल्लेख किया गया हैं।

51 शक्ति पीठ के ये स्थल भारत देश के साथ-साथ भारत के पड़ोसी देशों जैसे नेपाल, बांग्लादेश और पाकिस्तान में फैले हुए हैं। 51 शक्ति पीठ का धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्तव हैं जो भक्तों को गहन आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करवाता हैं। 

51 शक्ति पीठ की उत्पत्ति की कथा- Story of the origin of 51 Shakti Pithas

51 शक्ति पीठों की उत्पत्ति का संबंध देवी सती और भगवान शिव की कथा से हैं:- 

  • दक्ष यज्ञ और सती का आत्मदाह:- दक्ष प्रजापति की पुत्री और भगवान शिव की पत्नी देवी सती थी। दक्ष प्रजापति ने एक बार यज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ में दक्ष प्रजापति ने भगवान शिव को निमंत्रण नहीं दिया था। देवी सती अपने पति भगवान शिव के बिना ही अपने पिता के यज्ञ में गई थी। उस यज्ञ में दक्ष प्रजापति ने भगवान शिव का बहुत अपमान किया था। इस अपमान को देवी सती सहन नहीं कर पाई थी। बाद में देवी सती ने यज्ञ अग्नि में आत्मदाह कर लिया था। 
  • भगवान शिव का क्रोध और तांडव:- देवी सती के आत्मदाह के बाद भगवान शिव अत्यधिक क्रोधित हो गए थे। भगवान शिव ने देवी सती के मृत शरीर को अपने कंधों पर उठा लिया था। मृत शरीर को अपने कंधों पर उठाने के बाद भगवान शिव ने तांडव नृत्य करना आरम्भ कर दिया था। इससे ब्रह्मांड में अराजकता फैल गई थी। इस स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए थे। 
  • देवी सती के शरीर के टुकड़ों का गिरना:- सुदर्शन चक्र के प्रभाव के कारण देवी सती के शरीर के 51 टुकड़े पृथ्वी के अलग-अलग स्थानों पर गिर गए थे। जिन स्थानों पर देवी सती के शरीर के टुकड़े गिरे वहाँ वो टुकड़े शक्ति पीठ के रुप में सम्मानित हुए। प्रत्येक शक्तिपीठ देवी सती के एक अंग या आभूषण से संबंधित हैं। उन जगहों पर देवी सती के अलग-अलग रुपों की पूजा की जाती हैं। 

महत्तव- Importance

  • धार्मिक महत्तव:- हिंदू धर्म में शक्ति पीठ अत्यधिक पूजनीय स्थल हैं। ये स्थल देवी सती के अलग-अलग रुपों के प्रति श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक हैं। इन स्थलों पर भक्त देवी सती की शक्ति, आशीर्वाद और मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए आते हैं। प्रत्येक शक्ति पीठ का अपना एक अलग धार्मिक और पौराणिक महत्तव हैं जो वो शक्ति पीठ अन्य शक्ति पीठों से अलग बनाता हैं। 
  • आध्यात्मिक अनुभव:- हिंदू धर्म में शक्ति पीठों की यात्रा आध्यात्मिक साधना का महत्तवपूर्ण भाग माना जाता हैं। इन शक्ति पीठों के स्थल में आने वाले भक्त देवी सती की उपासना और साधना में लीन होकर गहन आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त करते हैं। यह कहा जाता हैं की इन शक्ति पीठों पर की गई पूजा और आराधना फलदायी होती हैं। शक्ति पीठों पर की गई पूजा और आराधना जीवन में आने वाली समस्याओं और दुखों से मुक्ति दिलाती हैं। 
  • सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्तव:- शक्ति पीठ न सिर्फ धार्मिक बल्कि शक्ति पीठ का महत्तव सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी महत्तवपूर्ण हैं। शक्ति पीठ के ये स्थल भारत की प्राचीन संस्कृति, परंपरा और स्थापत्य कला का एक उदाहरण हैं। इन स्थलों के मंदिरों की स्थापत्य कला और मूर्तिकला अद्वितीय हैं। शक्ति पीठ के इन स्थलों की स्थापत्य कला और मूर्तिकला अलग-अलग कालखंडों की स्थापत्य शैली को बताती हैं। 
  • मांगलिक और धार्मिक आयोजन:- नियमित रुप से शक्ति पीठों में अलग-अलग धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता हैं। विशेष रुप से इन शक्ति पीठों में नवरात्रि, दुर्गा पूजा और अन्य महत्तवपूर्ण त्योहारों को बड़े पैमाने पर मनाए जाते हैं। त्योहारों के अवसरों पर शक्ति पीठों में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती हैं। इन स्थानों पर देवी सती की विशेष पूजा-अर्चना भी की जाती हैं। 
  • आस्था का केंद्र:- हिंदू धर्म में शक्ति पीठ भक्तों की आस्था और विश्वास का प्रमुख केंद्र हैं। इन शक्ति पीठों पर देवी सती के दिव्य रुपों के दर्शन और पूजा-अर्चना के अनुसार भक्त अपनी आध्यात्मिक यात्रा को सार्थक बनाता हैं। यह भी कहा जाता हैं की इन शक्ति पीठों में की गई भक्ति देवी सती के आशीर्वाद प्राप्त करने का माध्यम हैं। 

हिंदू धर्म में 51 शक्ति पीठ में देवी उपासना के महत्तवपूर्ण स्थल हैं जो भक्तों को देवी सती की शक्ति और दिव्यता का अनुभव कराती हैं। शक्ति पीठ की उत्पत्ति की कथा और धार्मिक महत्तव ने भारत और भारत के पड़ोसी देशों के सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का एक अलग हिस्सा बना दिया हैं।

शक्ति पीठों की यात्रा और शक्ति पीठों के स्थल पर की जाने वाली पूजा-अर्चना का एक विशेष महत्तव हैं। यह विशेष महत्तव भक्तों के लिए गहन आध्यात्मिक अनुभव का एक स्त्रोत हैं। अब हम आपसे चर्चा करेंगे शक्ति पीठों के इतिहास के बारे में। 

शक्ति पीठों का इतिहास- Shakti Pithon ka itihas

अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं शक्ति पीठों के इतिहास के बारे में।

shakti pithon ka itihas

अब हम आपसे शक्ति पीठों के इतिहास के बारे में बात करें तो शक्ति पीठों का इतिहास निम्नलिखित हैं:- 

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प्रमुख शक्ति पीठों का इतिहास- History of major Shakti Pithas

51 शक्ति पीठों में कुछ प्रमुख शक्तिपीठों का इतिहास और पौराणिक कथाएँ निम्नलिखित हैं:- 

कामाख्या देवी मंदिर (गुवाहटी, असम)- Kamakhya Devi Temple (Guwahati, Assam)

असम के गुवाहटी में कामाख्या देवी मंदिर नीलाचल पहाड़ी पर स्थित हैं। कामाख्या देवी मंदिर को 51 शक्तिपीठों में से एक महत्तवपूर्ण पीठ माना जाता हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार कामाख्या देवी मंदिर वह स्थान हैं जहाँ देवी सती का योनि भाग गिरा था।

Kamakhya Devi Temple (Guwahati, Assam)

कामाख्या देवी मंदिर में सृजन की देवी की पूजा की जाती हैं। कामाख्या देवी मंदिर का मुख्य कक्ष गर्भगृह कहा जाता हैं। इस मंदिर में कोई मूर्ति नहीं हैं बल्कि इस मंदिर में योनि के आकार का पत्थर हैं। इस पत्थर को श्रद्धा और भक्ति के साथ पूजित किया जाता हैं। 

कामाख्या देवी मंदिर का इतिहास अलग-अलग राजवंशोंं के शासन काल से जुड़ा हुआ हैं। कामाख्या देवी मंदिर प्राचीन समय में शक्तिशाली राज्य का केंद्र था। इस मंदिर को अलग-अलग शासकों द्वारा बार-बार पुनर्निर्मित किया गया था। यह मंदिर तांत्रिक पूजा और तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध हैं। 

कालीघाट काली मंदिर (कोलकाता, पश्चित बंगाल)- Kalighat Kali Temple (Kolkata, West Bengal)

यह मंदिर कोलकाता में स्थित हैं और यह मंदिर देवी काली को समर्पित हैं। कालीघाट काली मंदिर उस स्थान पर बना हैं जहाँ देवी सती की चार अंगुलियाँ गिरी थी। इस मंदिर का उल्लेख 17वीं शताब्दी के अलग-अलग ग्रंथों में मिलता हैं। कालीघाट काली मंदिर देवी काली की उपासना का मुख्य केंद्र बना रहा हैं।

Kalighat Kali Temple (Kolkata, West Bengal)

यह कहा जाता हैं की कालीघाट काली मंदिर का निर्माण 1809 में किया गया था। इस मंदिर में काली माता की पूजा प्राचीन काल से ही जाती हैं।

कालीघाट काली मंदिर का धार्मिक महत्तव इसलिए भी अत्यधिक हैं क्योंकि इस मंदिर को काली पूजा का केंद्र माना जाता हैं। इस मंदिर में बड़ी संख्या में भक्त दर्शन करने आते हैं।

वैष्णो देवी (कटरा, जम्मू और कश्मीर)- Vaishno Devi (Katra, Jammu and Kashmir)

जम्मू और कश्मीर के कटरा में वैष्णों देवी का मंदिर त्रिकुटा पर्वत पर स्थित हैं। हिंदू धर्म के सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में यह मंदिर माना जाता हैं। वैष्णों देवी का मंदिर वह स्थान हैं जहाँ देवी सती का दाहिना हाथ गिरा था।

इस मंदिर में देवी सती के तीन रुपों – महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की पूजा की जाती हैं। इस मंदिर को पिंडियों के रुप में देखा जा सकता हैं।

Vaishno Devi (Katra, Jammu and Kashmir)

वैष्णों देवी का इतिहास कई सदियों पुराना हैं। वैष्णों देवी को भारत के प्रमुख शक्तिपीठ के रुप में माना जाता हैं। वैष्णों देवी मंदिर प्रतिवर्ष लाखों तीर्थयात्रियों को आकर्षित करने लगता हैं। वैष्णों देवी मंदिर में जाने के लिए एक कठिन पहाड़ी यात्रा करनी पड़ती हैं। 

तारापीठ (पश्चिम बंगाल)- Tarapith (West Bengal)

पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में तारापीठ स्थित हैं। यह मंदिर देवी तारा को समर्पित हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार तारापीठ मंदिर वह स्थान हैं जहाँ देवी सती की तीसरी आँख गिरी थी। तंत्र साधना के लिए तारापीठ मंदिर प्रसिद्ध हैं। इस मंदिर को तांत्रिकों का प्रमुख स्थान माना जाता हैं।

Tarapith (West Bengal)

देवी भागवत पुराण और तंत्र चूड़ामणि में तारापीठ का उल्लेख मिलता हैं। तारापीठ मंदिर में आने वाले भक्त देवी तारा की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पूजा और अनुष्ठान करते हैं। इस मंदिर के पास एक पवित्र श्मशान घाट भी हैं जहाँ तांत्रिक साधना की जाती हैं। 

ज्वालामुखी मंदिर (हिमाचल प्रदेश)- Jwalamukhi Temple (Himachal Pradesh)

हिमाचल प्रदेश के कांगडा जिले में ज्वालामुखी मंदिर स्थित हैं। इस जगह को ‘ज्वालाजी’ के नाम से भी जाना जाता हैं। ज्वालामुखी मंदिर उस स्थान पर स्थित हैं जहाँ देवी सती की की जीभ गिरी थी।

Jwalamukhi Temple (Himachal Pradesh)

इस मंदिर में देवी सती की कोई भी मूर्ति नहीं हैं बल्कि इस मंदिर में एक प्राकृतिक ज्वाला के रुप में देवी सती की पूजा की जाती हैं। जो बिना किसी ईंधन के निरंतर जलती रहती हैं। 

प्राचीन काल से ज्वालामुखी मंदिर का इतिहास जुड़ा हुआ हैं। यह मंदिर अलग-अलग शासकों द्वारा सरंक्षित और पुनर्निर्मित किया गया हैं। हिंदू धर्म के प्रमुख शक्तिपीठों में से ज्वालामुखी मंदिर एक हैं। ज्वालामुखी मंदिर में भक्त देवी सती की कृपा पाने के लिए अनुष्ठान करते हैं। 

महाकाली मंदिर (उज्जैन, मध्य प्रदेश)- Mahakali Temple (Ujjain, Madhya Pradesh)

महाकाली मंदिर को हरसिद्धि माता मंदिर के नाम से जाना जाता हैं। यह मंदिर मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित हैं। महाकाली मंदिर उस स्थान पर स्थित हैं जहाँ देवी सती की कोहनी गिरी थी। इस मंदिर में देवी महाकाली की पूजा की जाती हैं। महाकाली मंदिर उज्जैन के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक हैं।

Mahakali Temple (Ujjain, Madhya Pradesh)

अलग-अलग पुराणों में महाकाली मंदिर का उल्लेख मिलता हैं। इस मंदिर को महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के साथ महत्तवपूर्ण माना जाता हैं। महाकाली मंदिर की स्थापत्य शैली और विशेषता अन्य शक्तिपीठों से बिल्कुल अलग बनाती हैं।

इस मंदिर में भक्त देवी सती के दर्शन करने के लिए आते हैं। इस मंदिर में विशेष रुप से नवरात्रि के दौरान विशेष पूजा और अनुष्ठान आयोजित किया जाता हैं। 

निष्कर्ष- Conclusion

देवी सती और भगवान शिव की पौराणिक कथा प्रमुख शक्तिपीठों के इतिहास और उनकी उत्पत्ति से जुड़ी हुई हैं। 51 शक्ति पीठों का अपना एक धार्मिक और सांस्कृतिक महत्तव हैं। 51 शक्ति पीठ भक्तों के लिए गहन आध्यात्मिक अनुभव का स्त्रोत हैं।

ये स्थान न सिर्फ धार्मिक आस्था का केंद्र हैं बल्कि ये स्थान भारत की सांस्कृतिक धरोहर का भी महत्तवपूर्ण हिस्सा हैं। प्रत्येक शक्तिपीठ की अपनी कहानी और महत्तव हैं जो भक्तों के लिए आस्था का प्रतीक हैं। 

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मैं रोज़ाना की खबरों पर लिखने के लिए प्रेरित हूँ और भारत की सभी खबरों को कवर करता हूँ। मेरा लक्ष्य पाठकों को ताज़ा जानकारी प्रदान करना है, जो उन्हें समाचार की समझ और देशव्यापी घटनाओं की खोज में मदद करे।
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