टीबी मरीज़ के लिए पोषणयुक्त आहार और देसी उपचार

Vineet Bansal

आज हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं टीबी की बीमारी के बारे में। अब हम आपसे टीबी की बीमारी के बारे में बात करें तो टीबी एक संक्रामक रोग होता हैं जो मुख्य रुप से फेफड़ों को प्रभावित करता हैं, लेकिन टीबी शरीर के किसी भी भाग को प्रभावित कर सकती हैं। जैसे की हड्डियाँ, मस्तिष्क, गुर्दे आदि।

टीबी की बीमारी Mycobacterium Tuberculosis नामक बैक्टीरिया के कारण होती हैं। हम आपको बता देते हैं की टीबी का इलाज़ बीच में रोकना बहुत ज्यादा खतरनाक हो सकता हैं और इससे ड्रग रेसिस्टेंट टीबी भी हो सकती हैं। अब हम आपसे चर्चा करेंगे टीबी के प्रकार के बारे में।

टीबी के प्रकार- TB ke prakar

अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं टीबी के प्रकार के बारे में।

TB ke prakar

अब हम आपसे टीबी के प्रकार के बारे में बात करें तो मुख्य रुप से टीबी चार प्रकार की हो सकती हैं:-

  • फेफड़ों की टीबी:- फेफड़ों की टीबी टीबी का सबसे सामान्य प्रकार हैं जो फेफड़ों में होता हैं।
  • ब्राह्मा-फेफड़ीय टीबी:- ब्राह्मा-फेफड़ीय टीबी फेफड़ों के बाहर जैसे की लसीका ग्रंथि, रीढ़, मस्तिष्क या गुर्दों में भी हो सकती हैं।
  • निष्क्रिय टीबी:- निष्क्रिय टीबी व्यक्ति के शरीर में मौजूद बैक्टीरिया होते हैं लेकिन लक्षण नहीं दिखते हैं।
  • सक्रिय टीबी:- सक्रिय टीबी में रोग के लक्षण स्पष्ट रुप से प्रकट होते हैं।

ये हैं टीबी के चार प्रकार जिसके कारण टीबी की बीमारी हो सकती हैं। अब हम आपसे चर्चा करेंगे टीबी की बीमारी के कारण के बारे में।

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टीबी की बीमारी का कारण- TB ki bimari ka karan

अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं टीबी की बीमारी के कारण के बारे में।

TB ki bimari ka karan

अब हम आपसे टीबी की बीमारी के कारण के बारे में बात करें तो टीबी की बीमारी के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:-

Mycobacterium Tuberculosis

यह एक प्रकार का बैक्टीरिया होता हैं जो टीबी से बनता हैं। शरीर में यह बैक्टीरिया धीरे-धीरे प्रवेश करके बढ़ता हैं और आमतौर पर यह बैक्टीरिया फेफड़ों पर हमला करते हैं, लेकिन यह बैक्टीरिया शरीर के किसी भी भाग को भी प्रभावित कर सकते हैं।

टीबी फैलने के तरीके

यह बीमारी हवा के माध्यम से फैलती हैं। जब कोई संक्रमित व्यक्ति खांसता हैं, छींकता हैं और जोर से बात करता हैं या हंसता हैं तब वह व्यक्ति हवा में टीबी के बैक्टीरिया को छोड़ता हैं। इसे पास के मौजूद कोई भी दूसरा व्यक्ति साँस के साथ अंदर ले सकता हैं।

टीबी के जोखिम बढ़ाने वाले कारण

कारण विवरण
कमज़ोर इम्यून सिस्टम HIV/AIDS, कैंसर, कुपोषण या स्टेरॉइड दवा लेने वाले को टीबी की बीमारी हो सकती हैं।
भीड़भाड़ वाले और बंद स्थान जैसे की झुग्गी-झोपड़ियाँ, जेल, अनवेंटिलेटेड घर
धूम्रपान और शराब धूम्रपान और शराब फेफड़ों की रक्षा क्षमता को कमज़ोर करते हैं।
पहले से टीबी संक्रमण घर में किसी को टीबी की बीमारी होना
छोटे बच्चे और बुजुर्ग जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर होती हैं।

टीबी कैसे नहीं फैलती

यह बीमारी रोगी को छुने, हाथ मिलाने, खाना साझा करने या उनके साथ बैठने से आमतौर पर टीबी की बीमारी नहीं फैलती हैं जब तक हवा में बैक्टीरिया मौजूद न हों। अब हम आपसे चर्चा करेंगे टीबी की बीमारी के घरेलू उपाय के बारे में।

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टीबी की बीमारी का घरेलू उपाय- TB ki bimari ka gharelu upay

अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं टीबी की बीमारी के घरेलू उपायों के बारे में। अब हम आपसे टीबी की बीमारी के घरेलू उपायों के बारे में बात करें तो केवल घरेलू उपायों से टीबी का इलाज़ संभव नहीं हैं। टीबी एक गंभीर संक्रामक बीमारी हैं।

TB ki bimari ka gharelu upay

इसका इलाज़ डॉक्टर द्वारा निर्धारित एंटीबायोटिक दवाओं से किया जाना चाहिए। लेकिन इसके साथ-साथ कुछ घरेलू उपाय व आहार ऐसे भी हैं जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर रिकवरी को तेज़ करने में मददगार रहते हैं।

लहसुन

लहसुन में एंटीबैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं। आप रोज़ाना सुबह-खाली पेट 1-2 कली कच्चे लहसुन की चबाएँ या गर्म पानी में उबालकर पी लें।

हल्दी दूध

हल्दी में कर्क्यूमिन पाया जाता हैं जो सूजन और बैक्टीरिया से लड़ता हैं। आप रात को एक गिलास गर्म दूध में आधा चम्मच हल्दी डालकर पी लें।

शहद

शहद में प्राकृतिक एंटीबायोटिक पाया जाता हैं जो गले और फेफड़ों के लिए अत्यंत फायदेमंद रहता हैं। आप एक चम्मच शुद्ध शहद सुबह-शाम गुनगुने पानी के साथ लें।

नींबू और आंवला

नींबू और आंवला में विटामिन C पाया जाता हैं जो इम्यूनिटी बढ़ाता हैं और संक्रमण से लड़ता हैं। आप नींबू पानी, आंवला जूस या कच्चा आंवला भी खा सकते हैं।

नारियल का तेल

नारियल के तेल में लॉरिक एसिड पाया जाता हैं जो शरीर को ऊर्जा प्रदान करता हैं। आप नारियल के तेल का खाना पकाने में इस्तेमाल करें या दिन में 1-2 चम्मच लें।

पौष्टिक आहार

आप पौष्टिक आहार जैसे की दालें, अंडा, दूध, मूंगफली, गुड़, पालक, चावल, आलू और केला का सेवन कर सकते हैं। अगर भूख कम हो तो थोड़ा-थोड़ा करके बार-बार खा लें।

धूप लें

आप रोज़ाना सुबह की धूप में 15-20 मिनट बैठ लें। धूप में विटामिन D पाया जाता हैं जो इम्यूनिटी को मज़बूत करता हैं।

आप इस बात का खास ध्यान रखें की घरेलू उपाय अत्यंत मददगार हैं, लेकिन दवा बंद न करें। टीबी की बीमारी का पूरा इलाज़ 6-9 महीने तक करना आवश्यक हैं। टीबी का इलाज़ बीच में रोकना टीबी को और भी खतरनाक बना सकता हैं। अब हम आपसे चर्चा करेंगे टीबी की बीमारी का एलोपैथिक इलाज़ के बारे में।

टीबी की बीमारी का एलोपैथिक इलाज़- TB ki bimari ka Allopathic ilaz

आज हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं टीबी की बीमारी के एलोपैथिक इलाज़ के बारे में। अब हम आपसे टीबी की बीमारी के एलोपैथिक इलाज़ के बारे में बात करें तो टीबी का एलोपैथिक इलाज़ पूरी तरह से दवाओं पर आधारित हैं।

TB ki bimari ka Allopathic ilaz

इसे WHO और भारत सरकार की “Revised National TB Control Programme” के अनुसार चलाया जाता हैं। जिसे DOTS (Directly Observed Treatment Short-Course) भी कहते हैं।

स्टैंडर्ड दवाएँ

स्टैंडर्ड दवाएँ 4 प्रमुख दवाएँ होती हैं, जिन्हें शुरुआत में एक साथ दिया जाता हैं:-

दवा का नाम संक्षेप मेंं नाम विशेषता
Isoniazid INH सबसे प्रभावशाली दवा होती हैं।
Rifampicin RIF बैक्टीरिया को मारती हैं।
Pyrazinamide PZA शुरुआती संक्रमण तेज़ी से कम करता हैं।
Ethambutol EMB बैक्टीरिया की प्रतिरोधक क्षमता रोकता हैं।

इन सब दवाओं को कम-से-कम 2 महीने तक साथ दिया जाता हैं। उसके बाद INH और RIF को आगे 4-7 महीने तक दिया जाता हैं।

इलाज़ की कुल अवधि

सामान्य टीबी में टीबी के इलाज़ की कुल अवधि 6 महीने तक की होती हैं। हड्डियों या मस्तिष्क की टीबी में टीबी के इलाज़ की कुल अवधि 9-12 महीने तक की होती हैं। Multi Drug Resistant TB में टीबी के इलाज़ की कुल अवधि 18-24 महीने तक की होती हैं।

टीबी के इलाज़ के चरण

Intensive Phase

Intensive Phase में टीबी के इलाज़ की अवधि 2 महीने तक की होती हैं। इस चरण में दवाएँ INH+RIF+PZA+EMB हर दिन दी जाती हैं। इस चरण में दवाओं को देने का मुख्य उद्देश्य ज्यादातर बैक्टीरिया को खत्म करना होता हैं।

Continuation Phase

Continuation Phase में टीबी के इलाज़ की अवधि 4-7 महीने तक की होती हैं। इस चरण में दवाएँ INH+RIF हर दिन दी जाती हैं। इस चरण में दवाओं को देने का मुख्य उद्देश्य बचे हुए बैक्टीरिया को खत्म करना और पुनः संक्रमण रोकना होता हैं।

इलाज़ के दौरान जरुरी जाँच

टीबी के इलाज़ के दौरान बलगम की जाँच की जाती हैं। इस इलाज़ में लिवर फंक्शन टेस्ट किया जाता हैं क्योंकि दवाएँ लिवर पर असर डालती हैं। इलाज़ में सीबी-नाट टेस्ट भी किया जाता हैं क्योंकि यदि टीबी दवाओं का असर नहीं कर रही हो तो। टीबी के इलाज़ में वजन और भूख की भी निगरानी की जाती हैं।

इलाज़ के दौरान सावधानियाँ

रोज़ाना दवाएँ एक ही समय पर लें, दवाएँ खाली पेट लेना ज्यादा बहेतर होता हैं। कोई भी डोज़ मिस न करें। टीबी का इलाज़ बीच में न रोकें, वरना MDR-TB भी हो सकती हैं। इलाज़ के दौरान शराब या जिगर पर असर डालने वाली चीज़ें ना लें। इस इलाज़ में अगर उल्टी, आँखों में जलन, कमज़ोरी जैसी साइड इफेक्ट हो तो तुरंत डॉक्टर को बताएँ।

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निष्कर्ष- Conclusion

ये हैं टीबी की बीमारी के देसी उपचार से संबंधित जानकारियाँ हम आपसे आशा करते हैं की आपको जरुर पसंद आई होगी। इस जानकारी को प्राप्त करने के बाद आपको टीबी की बीमारी के देसी नुस्खें के बारे में थोड़ा ज्ञात हो गया होगा। इससे आपको टीबी की बीमारी का इलाज़ करने में थोड़ी सहायता मिलेगी।

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