आज हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं कावड़ यात्रा के बारे में। अब हम आपसे कावड़ यात्रा के बारे में बात करें तो कावड़ यात्रा एक धार्मिक तीर्थयात्रा हैं जो विशेष रुप से हिंदू धर्म के अनुयायियों द्वारा की जाती हैं। इस यात्रा में श्रद्धालु को कावड़िया भी कहते हैं।
कावडिया भगवान शिव को समर्पित होकर लंबी दूरी तय करते हैं और गंगा नदी से पवित्र जल लाकर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। कावड़ यात्रा सावन के महीने में होती हैं जो आमतौर पर जुलाई-अगस्त के बीच में आता हैं। अब हम आपसे चर्चा करेंगे कावड़ यात्रा की परंपरा के बारे में।
कावड़ यात्रा का परिचय- Kavad Yatra ka parichay
अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं कावड़ यात्रा के परिचय के बारे में। अब हम आपसे कावड़ यात्रा के परिचय के बारे में बात करें तो हिंदू धर्म में कावड़ यात्रा आस्था, भक्ति और तपस्या का विशेष पर्व हैं जो भगवान शिव को समर्पित हैं।
विशेष रुप से कावड़ यात्रा सावन मास में की जाती हैं जो हिंदू पंचाग के अनुसार भगवान शिव का प्रिय महीना माना जाता हैं।
इस यात्रा में श्रद्धालु को कावड़िए कहते हैं जो उत्तर भारत के विभिन्न हिस्सों में पैदल यात्रा करते हुए गंगा नदी से पवित्र जल भरते हैं और उस पवित्र जल को अपने क्षेत्र के किसी प्रमुख शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं।
श्रद्धालु अपने कंधों पर लकड़ी का बना विशेष ढ़ांचा उठाते हैं जिसे “कावड़” भी कहते हैं। इस ढ़ांचे में दोनों सिरों पर जल से भरे हुए बर्तन होते हैं। पवित्र जल बेहद पवित्र माना जाता हैं और इस जल को यात्रा के दौरान जमीन पर नहीं रखा जाता हैं।
कावड़ यात्रा सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं हैं, बल्कि यह यात्रा आत्मिक शुद्धि, नैतिक अनुशासन और सामूहिक भक्ति का भी प्रतीक होती हैं। इस यात्रा में भक्त नंगे पाँव यात्रा करते हैं, और “बोल बम” और “हर हर महादेव” के जयकारे लगते हैं और हर बाधा को पार करते हुए अपने ईश्वर के प्रति समर्पण दिखाते हैं।
उत्तर भारत के राज्यों जैसे की उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली में विशेष रुप से कावड़ यात्रा प्रसिद्ध होती हैं और हर वर्ष लाखों कावड़िए इस यात्रा में भाग लेते हैं। अब हम आपसे चर्चा करेंगे कावड़ यात्रा के धार्मिक महत्तव के बारे में।
कावड़ यात्रा का धार्मिक महत्तव- Kavad Yatra ka dharmik mahatva
अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं कावड़ यात्रा के धार्मिक महत्तव के बारे में। अब हम आपसे कावड़ यात्रा के धार्मिक महत्तव के बारे में बात करें तो हिंदू धर्म में कावड़ यात्रा का अति गहन धार्मिक महत्तव हैं। कावड़ यात्रा भगवान शिव की भक्ति, तपस्या और श्रद्धा का प्रतीक मानी जाती हैं।
इस यात्रा के माध्यम से भक्त मानते हैं की वे अपने पापों का प्रायश्चित करते हैं और ईश्वर से कृपा और मनोकामना पूर्ति की कामना करते हैं।
धार्मिक महत्तव
- भगवान शिव की कृपा प्राप्त करना:- शिव जी को सावन मास विशेष प्रिय हैं। सावन महीने में गंगा जल से अभिषेक करने से भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं और भक्तों की सब इच्छाएँ पूर्ण करते हैं।
- पापों से मुक्ति का मार्ग:- ऐसा कहा जाता हैं की कावड़ यात्रा करके गंगा जल चढ़ाने से व्यक्ति अपने जीवन के पापों से मुक्त होता हैं और उस व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग मिलता हैं।
- श्रवण कुमार की भक्ति की परंपरा:- कुछ लोग कावड़ यात्रा को श्रवण कुमार की भक्ति से भी जोड़ते हैं, जिन्होंने अपने माता-पिता को कंधे पर बैठाकर तीर्थ यात्रा कराई थी। यह यात्रा भी एक प्रकार से सेवा, समर्पण और भक्ति का प्रतीक होता हैं।
शिव पुराण में वर्णन
शिव पुराण में बताया गया हैं की गंगा जल शिवलिंग पर चढ़ाने से शिव जी की विशेष कृपा प्राप्त होती हैं। यह भी बताया जाता हैं की समुद्र मंथन के समय शिव जी ने विषपान किया था, तभी देवताओं ने शिव जी को गंगा जल अर्पित किया जिससे उनका ताप शांत हुआ। इसी घटना को कावड़ यात्रा का आधार माना गया हैं।
इस यात्रा के दौरान भक्त संयमित जीवन जीते हैं, शुद्ध शाकाहारी भोजन करते हैं, ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं और मन को ईश्वर में लगाते हैं। अब हम आपसे चर्चा करेंगे कावड़ के अर्थ और रुप के बारे में।
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कावड़ का अर्थ और रुप- Kavad ka arth aur rup
अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं कावड़ के अर्थ और रुप के बारे में। अब हम आपसे कावड़ के अर्थ और रुप के बारे में बात करें तो “कावड़” एक विशेष प्रकार की लकड़ी की बनी सरंचना होती हैं, जिसका इस्तेमाल भक्त गंगा जल को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए करते हैं।
भक्त यह ढ़ांचा अपने कंधों पर उठाकर लंबी दूरी तय करते हैं और अंत में भगवान शिव के शिवलिंग पर जल अर्पित करते हैं।
कावड़ का अर्थ
संस्कृत मूल से “कावड़” शब्द निकला माना जाता हैं, जिसका अर्थ हैं- दो सिरों पर बोझ लेकर कंधों पर ढोने वाला साधन। कावड़ साधन श्रद्धा, समर्पण और तपस्या का प्रतीक बन गया हैं।
कावड़ का रुप
- सरंचना:- कावड़ एक मज़बूत लकड़ी या बांस की छड़ी होती हैं। इसके दोनों सिरों पर जलपात्र बंधे होते हैं। पूरा ढ़ांचा सजाया जाता हैं- झंडियों, फूलों, भगवान शिव की तस्वीरों और रंगीन कपड़ों से।
- वजन और संतुलन:- इस ढ़ांचे के दोनों और रखे जल के बर्तन संतुलित मात्रा में भरे जाते हैं ताकि वजन बराबर रहें। जल को जमीन पर नहीं रखा जाता हैं, इसके लिए विशेष स्टैंड या सहारा रखा जाता हैं।
- आधुनिक रुप:- आजकल कावड़ को ज्यादा आकर्षक बनाने के लिए LED लाइट्स, ध्वनि तंत्र और घंटियों से सजाया जाता हैं।
कावड़ का प्रतीकात्मक अर्थ
- भक्ति और सेवा का संतुलन:- दोनों और का समान भार बताता हैं की ईश्वर की भक्ति में संतुलन और अनुशासन कितना जरुरी हैं।
- कंधे पर उठाया गया भार:- यह जीवन की कठिनाइयों को सहन करने और भगवान के लिए समर्पण का प्रतीक होता हैं।
- श्रद्धा की यात्रा:- कावड़ केवल एक साधन नहीं हैं, बल्कि श्रद्धा, संयम और आत्म-नियंत्रण का प्रतीक होता हैं।
अब हम आपसे चर्चा करेंगे कावड़ यात्रा की शुरुआत और इतिहास के बारे में।
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कावड़ यात्रा की शुरुआत और इतिहास- Kavad Yatra ki shuruat aur itihas
अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं कावड़ यात्रा की शुरुआत और इतिहास के बारे में। अब हम आपसे कावड़ यात्रा की शुरुआत और इतिहास के बारे में बात करें तो प्राचीन काल से कावड़ यात्रा का इतिहास जुड़ा हुआ हैं और इसका वर्णन हिंदू धर्म के पुराणों तथा धार्मिक ग्रंथों में मिलता हैं। कावड़ यात्रा भगवान शिव की भक्ति से जुड़ी हुई हैं।
इस यात्रा में श्रद्धालु गंगा जल लाकर शिवलिंग पर अर्पित करते हैं। इस यात्रा की परंपरा सदियों से चली आ रही हैं और समय के साथ यह एक विशाल जनआंदोलन का रुप ले चुकी हैं।
कावड़ यात्रा की पौराणिक मान्यता
- समुद्र मंथन की कथा से जुड़ाव:- कावड़ यात्रा की सबसे प्रमुख मान्यता समुद्र मंथन से संबंधित हैं। जब मंथन से कालकूट विष निकला तब पूरे ब्रह्मांड को उसकी ज्वाला से बचाने के लिए शिव जी ने विषपान कर लिया था। विष के असर को शांत करने के लिए देवताओं ने गंगा जल लाकर शिवजी के सिर पर अर्पित किया था। तब से गंगा जल को शिवलिंग पर चढ़ाने की परंपरा शुरु हुई थी और यह परंपरा कावड़ यात्रा के रुप में प्रतिष्ठित हुई थी।
- रामायण से संबंध:- यह कहा जाता हैं की भगवान श्रीराम ने सावन के महीने में कावड़ के माध्यम से गंगाजल लाकर शिवलिंग पर अर्पित किया था। कावड़ यात्रा शिवभक्ति का एक उदाहरण होता हैं और इसे कावड़ यात्रा की ऐतिहासिक प्रेरणा माना जाता हैं।
ऐतिहासिक विकास
प्रारंभ में कावड़ यात्रा कुछ साधु-संतों और श्रद्धालु ग्रामीणों द्वारा की जाती थी। धीरे-धीरे यह परंपरा उत्तर भारत के राज्यों में फैलती गई थी। 20वीं सदी के उत्तरार्ध में कावड़ यात्रा ज्यादा लोकप्रिय और संगठित हुई थी। हर वर्ष अब करोड़ों श्रद्धालु इस यात्रा में भाग लेते हैं।
वर्तमान में कावड़ यात्रा
आज कावड़ यात्रा उत्तर भारत के उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली आदि राज्यों में बहुत व्यापक स्तर पर होती हैं। इस यात्रा की भव्यता और आस्था इतनी गहरी हैं की इसे विश्व की सबसे बड़ी धार्मिक यात्राओं में से एक माना जाता हैं। अब हम आपसे चर्चा करेंगे यात्रा के समय और सावन माह के महत्तव के बारे में।
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यात्रा का समय और सावन माह का महत्तव- Yatra ka samay aur sawan maas ka mahatva
अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं यात्रा का समय और सावन माह के महत्तव के बारे में। अब हम आपसे यात्रा के समय और सावन माह के महत्तव के बारे में बात करें तो विशेष रुप से कावड़ यात्रा श्रावण मास में की जाती हैं जो हिंदू पंचांग के अनुसार चंद्र मास का पाँचवाँ महीना होता हैं।
यह महीना भगवान शिव को अति प्रिय माना जाता हैं और इस वजह से इस समय की गई कावड़ यात्रा का धार्मिक महत्तव बहुत ज्यादा होता हैं।
कावड़ यात्रा कब शुरु होती हैं?
आमतौर पर कावड़ यात्रा श्रावण मास के पहले दिन से शुरु होती हैं और श्रावण पूर्णिमा या शिवरात्रि तक चलती हैं। कुछ स्थानों पर कावड़ यात्रा सावन के सोमवारों पर विशेष रुप से केंद्रित होती हैं जिन्हें “श्रावण सोमवार” भी कहते हैं।
2025 में कावड़ यात्रा की संभावित अवधि
श्रावण मास इस वर्ष 10 जुलाई से 9 अगस्त 2025 तक रहेगा। इन दिनों के दौरान लाखों कावड़िए गंगाजल लेने के लिए हरिद्वार, ऋषिकेश्क, गौमुख, सुल्तानगंज आदि स्थानों की और प्रस्थान करते हैं।
सावन माह का धार्मिक महत्तव
- भगवान शिव का प्रिय महीना:- पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सावन में भगवान शिव की आराधना करने से वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं। इस महीने माता पार्वती ने कठिन तप कर शिव को पति के रुप में प्राप्त किया था।
- पंच तत्वों का संतुलन:- वर्षा ऋतु के दौरान वातावरण शुद्ध होता हैं और यह समय भक्ति और ध्यान के लिए अनुकूल माना जाता हैं।
- सावन के सोमवार:- श्रावण के महीने के प्रत्येक सोमवार को “श्रावण सोमवार व्रत” रखा जाता हैं। भक्त शिवलिंग पर जल, बेलपत्र, धतूरा, भस्म आदि अर्पित करते हैं।
- गंगा जल चढ़ाने की विशेष परंपरा:- यह माना जाता हैं की इस महीने गंगा जल से अभिषेक करने से शिवजी सारे पापों का नाश करते हैं और मनोकामना पूर्ण करते हैं।
श्रावण मास और कावड़ यात्रा का आपसी संबंध बहुत गहरा हैं। यह समय भक्तों के लिए आध्यात्मिक शुद्धि, भक्ति और ईश्वर से जुड़ाव का विशेष अवसर होता हैं। इस पवित्र महीने में कावड़ यात्रा करना भगवान शिव की विशेष कृपा पाने का रास्ता माना जाता हैं। अब हम आपसे चर्चा करेंगे कावड़ यात्रा के नियम और अनुशासन के बारे में।
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कावड़ यात्रा के नियम और अनुशासन- Kavad Yatra ke niyam aur anushasan
अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं कावड़ यात्रा के नियम और अनुशासन के बारे में। अब हम आपसे कावड़ यात्रा के नियम और अनुशासन के बारे में बात करें तो कावड़ यात्रा न सिर्फ एक धार्मिक यात्रा हैं, बल्कि यह अनुशासन, संयम और शुद्ध आचरण का प्रतीक हैं।
कावड़ यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को कुछ विशेष नियमों और मर्यादाओं का पालन करना होता हैं जो भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और भक्ति को बताते हैं।
प्रमुख नियम और अनुशासन
- पवित्रता और शुद्ध आचरण:- इस यात्रा के दौरान कावड़िए शुद्ध, सात्विक भोजन करते हैं। इस यात्रा में मांस, मंदिरा, लहसुन-प्याज़ आदि का सेवन पूर्णत: वर्जित होता हैं। इसमें किसी प्रकार का अशुद्ध व्यवहार या अपवित्र भाषा का इस्तेमाल नहीं किया जाता हैं।
- नंगे पाँव चलना:- ज्यादातर कावड़िए पूरी यात्रा नंगे पाँव पूरी करते हैं। यह त्याग और तपस्या का प्रतीक होता हैं।
- गंगाजल को जमीन पर नहीं रखना:- गंगाजल से भरे जलपात्रों को कभी भी जमीन पर नहीं रखा जाता हैं। यदि विश्राम करना हो तो विशेष स्टैंड या सहारा प्रयोग किया जाता हैं।
- शिव के नाम का जाप:- यात्रा के दौरान कावड़िए लगातार “बोल बम”, “हर हर महादेव”, “बम बम भोले” जैसे जयकारे लगाते हैं।
- दूसरों का सम्मान और सहयोग:- कावड़िए एक-दूसरे की सहायता करते हैं, किसी से दुर्व्यवहार नहीं करते हैं। रास्ते में शांति बनाए रखना और किसी प्रकार का विवाद न करना आवश्यक होता हैं।
- नियमित स्नान और ध्यान:- कावड़ यात्रा के दौरान रोज़ स्नान करना, शिव भक्ति करना और गंगाजल को संभालकर रखना आवश्यक होता हैं।
डाक कावड़ के विशेष नियम
डाक कावड में गंगाजल भरने के बाद निरंतर दौड़ते हुए बिना रुके जल चढ़ाया जाता हैं। इस यात्रा में गंगाजल किसी भी हालत में रुके नहीं- इसलिए इसके लिए विशेष तैयारी, सहयोगी दल और सावधानी जरुरी होती हैं।
विशेष अनुशासन
कावड़ यात्रा में महिलाएँ भी अब बड़ी संख्या में भाग लेने लगी हैं, और उनके लिए भी समान नियम होते हैं। कई कावड़िए यात्रा से पहले व्रत या संकल्प लेते हैं जैसे की मौन व्रत, एक समय भोजन आदि।
कावड़ यात्रा सिर्फ गंगाजल लाकर चढ़ाने की प्रक्रिया नहीं हैं बल्कि यह एक आध्यात्मिक अनुशासन हैं जो मनुष्य को संयम, सेवा और आत्म-नियंत्रण का पाठ सिखाती हैं। इन सब नियमों का पालन करने से कावड़ यात्रा सफल और पुण्यदायी मानी जाती हैं। अब हम आपसे चर्चा करेंगे कावड़ यात्रा कहाँ से शुरु होती हैं?
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कहाँ से शुरु होती हैं कावड़ यात्रा- Kahan se shuru hoti hain Kavad Yatra
अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं कावड़ यात्रा के शुरु होने के बारे में। अब हम आपसे कावड़ यात्रा के शुरु होने के बारे में बात करें तो मुख्य रुप से कावड़ यात्रा उत्तर भारत में स्थित गंगा नदी के तटवर्ती तीर्थ स्थलों से शुरु होती हैं, जहाँ कावड़िए पवित्र गंगाजल भरते हैं और उस पवित्र गंगाजल को अपने स्थानीय या विशेष शिव मंदिरों तक ले जाकर शिवलिंग पर अर्पित करते हैं।
कावड़ यात्रा यहाँ से शुरु होती हैं
- हरिद्वार (उत्तराखंड):- कावड़ यात्रा के लिए हरिद्वार सबसे लोकप्रिय और भीड़भाड़ वाला स्थल हैं। हरिद्वार से उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा आदि के कावड़िए जल भरते हैं।
- गंगोत्री और गौमुख:- गंगोत्री हिमालय की ऊँचाई पर स्थित गंगा का उद्गम स्थल होता हैं। गंगोत्री से यात्रा करना अति कठिन और विशेष पुण्यदायक माना जाता हैं।
- ऋषिकेश:- ऋषिकेश हरिद्वार से थोड़ा ऊपर, शांत वातावरण और साधु-संतों का स्थल हैं।
- सुल्तानगंज (बिहार):- सुल्तानगंज बिहार और झारखंड के कावड़ियों के लिए प्रमुख गंगाजल भरने का केंद्र हैं। सुल्तानगंज से कावड़िए बाबा बैद्यनाथ धाम जाते हैं।
- वाराणसी (उत्तर प्रदेश):- काशी से भी कई स्थानीय भक्त कावड़ यात्रा की शुरुआत करते हैं।
कावड़ यात्रा हरिद्वार, गंगोत्री, ऋषिकेश और सुल्तानगंज जैसे पवित्र स्थलों से शुरु होती हैं, जहाँ से कावड़िए गंगाजल लेकर अपने आराध्य शिव जी के मंदिर तक पैदल, नंगे पाँव और पूरी श्रद्धा से यात्रा करते हैं। अब हम आपसे चर्चा करेंगे पवित्र गंगाजल कहाँ चढ़ाया जाता हैं?
पवित्र गंगाजल कहाँ चढ़ाया जाता हैं?- Pavitra gangajal kahan chadhaya jata hain?
अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं पवित्र जल चढ़ाने के बारे में। अब हम आपसे पवित्र जल चढ़ाने के बारे में बात करें तो कावड़ यात्रा में श्रद्धालु गंगा नदी से पवित्र जल भरकर उसे शिवलिंग पर अर्पित करते हैं।
ये पवित्र जल अलग-अलग प्रसिद्ध शिव मंदिरों में ले जाकर चढ़ाया जाता हैं जो की भक्तों के निवास स्थान या विशेष तीर्थ स्थलों पर स्थित होते हैं।
यहाँ गंगाजल चढ़ाया जाता हैं
- बाबा बैद्यनाथ धाम (देवघर, झारखंड):- बाबा बैद्यनाथ धाम ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं। सुल्तानगंज से गंगाजल लाकर बाबा बैद्यनाथ धाम में चढ़ाया जाता हैं। यह यात्रा सबसे लंबी और कठिन कावड़ यात्राओं में से एक मानी जाती हैं।
- काशी विश्वनाथ मंदिर (वाराणसी, उत्तर प्रदेश):- काशी विश्वनाथ मंदिर शिव जी का प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर हैं। इस मंदिर में सावन में हज़ारों भक्त गंगाजल चढ़ाते हैं। यह जल प्राय: स्थानीय गंगा घाटों से भरा जाता हैं।
- महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग (उज्जैन, मध्यप्रदेश):- इस मंदिर में भी कावड़िए गंगा जल चढ़ाने आते हैं, हालांकि गंगा का जल कहीं दूरी से लाया जाता हैं।
- केदारनाथ (उत्तराखंड):- कुछ विशेष भक्त गंगाजल लाकर केदारनाथ भी पहुँचते हैं। यह यात्रा अधिक कठिन और ऊँचाई वाली यात्री होती हैं।
- क्षेत्रीय शिव मंदिर:- कई कावड़िए अपने गाँव, शहर या कस्बे के प्रमुख शिव मंदिरों में जल चढ़ाते हैं। जैसे की काशी विश्वनाथ, पंचमुखी महादेव, कालेश्वरनाथ मंदिर, भोलेनाथ धाम आदि।
शिवमंदिरों में गंगाजल चढ़ाना कावड़ यात्रा का अंतिम और सबसे महत्तवपूर्ण चरण होता हैं। यह क्रिया भक्त की श्रद्धा, समर्पण और साधना का प्रतीक हैं। अब हम आपसे चर्चा करेंगे कावड़ियों की पोशाक और पहचान के बारे में।
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कावड़ियों की पोशाक और पहचान- Kavadiyon ki poshak aur pehchan
अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं कावड़ियों की पोशाक और पहचान के बारे में। अब हम आपसे कावड़ियों की पोशाक और पहचान के बारे में बात करें तो एक विशेष प्रकार की कावड़िए पोशाक पहनते हैं और कुछ विशेष चिन्हों के माध्यम से हम आसानी से पहचान सकते हैं।
उनकी वेशभूषा, रंग और व्यवहार, शिवभक्ति, तपस्या और समर्पण का प्रतीक होता हैं।
कावड़ियों की पारंपरिक पोशाक
- केसरिया या भगवा रंग के वस्त्र:- आमतौर पर कावड़िए भगवा या केसरिया रंग के कपड़े पहनते हैं। यह रंग त्याग, तपस्या और भक्ति का प्रतीक होता हैं।
- टी-शर्ट या कुर्ता और लुंगी:- ज्यादातर पुरुष कावड़िए टी-शर्ट या कुर्ता के साथ लुंगी या शॉर्ट्स भी पहनते हैं। अब महिलाएँ भी कावड़ यात्रा में हिस्सा लेने लगी हैं, महिलाएँ सलवार-कुर्ता या ट्रैक सूट पहनती हैं और साथ में केसरियाँ दुपट्टा या अंगोछा।
- सिर पर पड़ी या रुमाल:- कावड़िए सिर को ढ़ँकने के लिए भगवा रंग की पट्टी या रुमाल बाँधते हैं, जिस पर “ओउम् नम: शिवाय:” या “बोल बम” लिखा होता हैं।
- पैरों में चप्पल नहीं:- ज्यादातर कावड़िए नंगे पाँव यात्रा करते हैं। विशेष रुप से कठिन कावड़िए पूरे रास्ते पर घुटनों के बल या लेटकर भी यात्रा करते हैं।
पहचान और प्रतीक
- कंधे पर कावड़:- कावड़ लकड़ी की लंबी डंडी होती हैं जिसके दोनों और गंगाजल के बर्तन बंधे होते हैं। यह पहचान सबसे सही पहचान होती हैं।
- कावड़ की सजावट:- फूलों, झंडियों, भगवान शिव की तस्वीरों, रंगीन कपड़ों और अब LED लाइट्स से कावड़ को सजाया जाता हैं।
- नारे और भक्ति गीत:- श्रद्धालु “बोल बम”, “बम बम भोले”, “हर हर महादेव” जैसे नारे लगाते हैं। श्रद्धालु कई बार समूह में चलते हुए भजन, डमरु और ढोल भी बजाते हैं।
- झंडा या ध्वज:- कई कावड़िए एक झंडा भी साथ रखते हैं जिस पर “ओउम्” या शिव का चित्र होता हैं।
- विशेष टैटू या शरीर का चित्रण:- कुछ लोग शरीर पर “ओउम्”, त्रिशूल या शिव का चित्र भी बनवाते हैं।
कावड़ियों की पोशाक सिर्फ कपड़ों का चयन नहीं, बल्कि यह उनकी भक्ति, तपस्या और शिव जी के प्रति समर्पण का प्रतीक होता हैं। भगवा वस्त्र, नंगे पाँव चलना, कंधे पर कावड़ और “बोल बम” की गूंज- यह सभी मिलकर कावड़ियों को आम जन से अलग पहचान देते हैं।
आवश्यक जानकारी:- शरद नवरात्रि के दशवें दिन दशहरा के पर्व के बारे में।
निष्कर्ष- Conclusion
ये हैं कावड़ यात्रा से संबंधित जानकारियाँ हम आपसे आशा करते हैं की आपको जरुर पसंद आई होगी। इस जानकारी से आपको कावड़ यात्रा के बारे में सम्पूर्ण जानकारियाँ प्राप्त हो गई होगी।
अगर आपको हमारी दी हुई जानकारियाँ पसंद आए तो आप हमारी दी हुई जानकारियों को लाइक व कमेंट जरुर कर लें।
इससे हमें प्रोत्साहन मिलेगा ताकि हम आपको बहेतर-से-बहेतर जानकारियाँ प्राप्त करवा सकें। हमारा उद्देश्य आपको घुमराह करना नहीं हैं बल्कि आप तक सही जानकारियाँ प्राप्त करवाना हैं।