समाज को आईना दिखाती होमबाउंड

Vineet Bansal

आज हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं होमबाउंड फिल्म के बारे में। अब हम आपसे होमबाउंड फिल्म के बारे में बात करें तो जल्द ही भारतीय सिनेमाघरों में ईशान खट्टर विशाल जेठवा और जाह्नवी कपूर स्टारर फिल्म होमबाउंड रिलीज़ की जाएगी। इस फिल्म का रिव्यू सामने आया हैं जो यह बताता हैं की फिल्म की कहानी समाज को आईना दिखानी वाली और दिल को छूने वाली होती हैं।

बदन पर वर्दी दिखती हैं न तो सोने पर लिखा नाम नहीं पढ़ता कोई। एक बार हम सिपाही बने न तो… किसी के बाप में हिम्मत नहीं होगी हमें गरियाने की। यह परस्पर संवाद नीरज घेवन निर्देशित फिल्म होमबाउंड में नहीं हैं।

केवल तालियाँ बटोरने के लिए की गई डायलॉगबाजी नहीं हैं। इस फिल्म की शुरुआत में इसके नायक शोएब और दलित चंदन के बीच की बातचीत हैं। इस वार्तालाप में होमबाउंड का मर्म हैं।

क्या हैं होमबाउंड की कहानी?- Kya hain Homebound ki kahani?

मापुर नामक सुदूर गाँव में जातिवाद और भेदभाव की त्रासदी से त्रस्त चंदन कुमार, मोहम्मद शोएब पुलिस भर्ती की परीक्षा के लिए रेलवे स्टेशन आ जाते हैं। वहीं उनकी मुलाकात सुधा भारती से हो जाती हैं।

Kya hain Homebound ki kahani

अंबेडकरवादी सुधा अपनी गरिमा के लिए लड़ने के साथ अपने पूरे समुदाय को ऊपर उठाना चाहती हैं। उसका यह मानना हैं की शिक्षा ही इसका एकमात्र रास्ता होता हैं।

वहीं शोएब और चंदन को पुलिस में भर्ती होना सम्मान और समानता की प्राप्ति का मौका जैसा लगता हैं। प्रदेश पुलिस में कॉन्स्टेबल की परीक्षा में उनकी दोस्ती पर पड़ता हैं। उसमें दरार आ जाती हैं।

बाद में पता चलता हैं की भर्ती परीक्षा के परिणाम पर रोक लग गई हैं। इसी बीच सुधा और चंदन की नज़दीकियाँ बढ़ जाती हैं और हालात मोड़ ले लेते हैं।

पारिवारिक और आर्थिक कारणों से दोनों सूरत में कपड़ों की मिल में नौकरी करने जाते हैं। बाद में कोरोना का प्रकोप आ जाता हैं। लॉकडाउन लग जाता हैं। इन दोनों के लिए घर से दूर जीविकोपार्जन करना मुश्किल हो जाता हैं।

सामाजिक उत्पीड़न, सांप्रदायिक घृणा और गरीबी के भारी बोझ को पार करते हुए क्या ये दोनों घर लौट पाएंगे? यह कहानी इसी संबंध में हैं।

जानिए अजेय फिल्म की कहानी के बारे में।

ऑस्कर में हुई हैं एंट्री- Oscar mein hui hain entry

ऑस्कर में अगले साल अंतरराष्ट्रीय फीचर फिल्म श्रेणी में भारत की आधिकारिक प्रविष्टि के रुप में चुनी होमबाउंड को प्रतिष्ठित कान फिल्म फेस्टिवल और टोरंटों फिल्म फेस्टिवल में काफी सराहना मिली हैं। यह फिल्म एक सच्ची घटना पर आधारित होती हैं, जिसका जिक्र मूल रुप से 2020 के न्यूयॉर्क टाइम्स के आलेख में बशास्त पीर ने टेकिंग अमृत होम में किया था।

Oscar mein hui hain entry

मसान की रिलीज़ के करीब एक दशक बाद नीरज घेवन ने फीचर फिल्म का निर्देशन किया गया हैं। नीरज और सुमित राय द्वारा लिखित कहानी जातिवाद, सामाजिक और धार्मिक भेदभाव का बारीकी से चित्रण करती हैं।

नीरज की तारीफ करनी होगी की उन्होंने इतने नाजुक विषय को बहुत ईमानदारी और संवेदनशीलता के साथ गढ़ा हैं। शुरुआत में ही वह अपने पात्रों के दर्द और छटपटाहट को बयां करती हैं। बाद में आहिस्ता से उनकी दुनिया में लेते हैं।

सिनेमेटोग्राफर प्रतीक शाह का कैमरा पात्रों की जिंदगी को गहराई से बताने में सहायता करता हैं।

उसमें चंदन की माँ को विरासत में मिली फटी और नुकीली एडियाँ हो, या बहन को शिक्षा से वंचित रखना ताकि चंदन पढ़ाई कर सके या शोएब से एचआर मैनेजर का कहना की वो उसकी बोतलन भरे जैसे दृश्य झकझोर देते हैं। वहीं नीरज घेवन, वरुण ग्रोवर और श्रीधर दुबे के लिखे संवाद उसको ठोस आधार देते हैं।

आवश्यक जानकारी:- निशांची फिल्म की कहानी के बारे में।

निष्कर्ष- Conclusion

ये हैं होमबाउंड फिल्म से संबंधित जानकारियाँ हम आपसे आशा करते हैं की आपको जरुर पसंद आई होगी। इस जानकारी से आपको होमबाउंड फिल्म की कहानी से संबंधित हर प्रकार की जानकारियाँ प्राप्त होंगी।

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