अहोई अष्टमी: संतान सुख और परिवार की समृद्धि का पर्व

Vineet Bansal

आज हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं अहोई अष्टमी के पर्व के बारे में। अब हम आपसे अहोई अष्टमी के पर्व के बारे में बात करें तो हर वर्ष अहोई अष्टमी का पर्व कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता हैं।

मुख्य रुप से अहोई अष्टमी का पर्व माताओं द्वारा अपनी संतान की दीर्घायु, स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना के लिए मनाया जाता हैं। अब हम आपसे चर्चा करेंगे अहोई अष्टमी का पर्व कब आता हैं?

अहोई अष्टमी का पर्व कब आता हैं?- Ahoi Ashtami ka parv kab aata hain?

अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं अहोई अष्टमी का पर्व कब आता हैं? हर वर्ष अहोई अष्टमी का पर्व कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता हैं। अहोई अष्टमी का पर्व मुख्य रुप से माताएँ अपनी संतान की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य के लिए उपवास रखकर मनाती हैं।

ahoi ashtami ka parv kab aata hain

अहोई अष्टमी का पर्व इस वर्ष 2025 में 13 अक्टूबर 2025 को मनाया जा रहा हैं। माताएँ अहोई अष्टमी के दिन अहोई माता की पूजा करती हैं और तारों के दर्शन के बाद अपना व्रत खोलती हैं। अब हम आपसे चर्चा करेंगे अहोई अष्टमी के पर्व के महत्तव के बारे में।

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अहोई अष्टमी के पर्व का महत्तव- Ahoi Ashtami ke parv ka mahatv

अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं अहोई अष्टमी के पर्व के महत्तव के बारे में। अब हम आपसे अहोई अष्टमी के पर्व के महत्तव के बारे में बात करें तो मुख्य रुप से अहोई अष्टमी का पर्व माताओं द्वारा अपनी संतान की दीर्घायु, स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना के लिए मनाया जाता हैं।

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अहोई अष्टमी के पर्व का विशेष महत्तव संतान की सुख-समृद्धि से जुड़ा हुआ हैं। अहोई अष्टमी के पर्व के साथ कुछ अन्य महत्तवपूर्ण पहलू निम्नलिखित हैं:-

अहोई अष्टमी के पर्व के निम्नलिखित महत्तव

  • मातृत्व का सम्मान:- अहोई अष्टमी के पर्व के दिन माताएँ अपने बच्चों की रक्षा, दीर्घायु और स्वस्थ जीवन की कामना के लिए व्रत रखती हैं। यह व्रत मातृत्व के प्रति प्रेम और समर्पण का प्रतीक हैं।
  • पौराणिक मान्यता:- अहोई अष्टमी से संबंधित एक कथा के अनुसार एक बार एक स्त्री ने गलती से अपने घर की दीवार में रह रही साही (जंगली चूहे) के बच्चों को मार दिया था। इस गलती के परिणामस्वरुप उस स्त्री के अपने संतान की मृत्यु हो गई। इन सब घटना के बाद उस स्त्री ने भगवान से प्रार्थना की और अहोई माता का व्रत रखकर उन्हें प्रसन्न किया। इन सब घटना के परिणामस्वरुप उस स्त्री को संतान सुख प्राप्त हुआ। इस कारण महिलाएँ अहोई माता का व्रत करती हैं।
  • आशीर्वाद की प्राप्ति:- अहोई अष्टमी के दिन अहोई माता की पूजा करने से माता के आशीर्वाद से संतान को अच्छे स्वास्थ्य और सफलता का वरदान मिलता हैं।
  • संघर्ष से मुक्ति:- अहोई अष्टमी के पर्व की मान्यता हैं की अहोई अष्टमी के पर्व के दिन व्रत रखने और पूजा करने से संतान को जीवन के संघर्षों से मुक्ति मिलती हैं। संतान के जीवन में शांति और सुख आता हैं।
  • परिवार की समृद्धि:- अहोई अष्टमी के व्रत के साथ यह भी विश्वास किया जाता हैं की यह व्रत पूरे परिवार की सुख-शांति और समृद्धि के लिए लाभकारी होता हैं।

इस दिन व्रती महिलाएँ सुबह से लेकर तारों के दर्शन तक उपवास करती हैं। व्रती महिलाएँ संध्या को अहोई माता की पूजा करने के बाद अपने व्रत का पारायण करती हैं। अब हम आपसे चर्चा करेंगे अहोई अष्टमी के पर्व के मनाने के बारे में।

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अहोई अष्टमी का पर्व क्यों मनाया जाता हैं?- Ahoi Ashtami ka parv kyon manaya jata hain?

अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं अहोई अष्टमी के पर्व के मनाने के बारे में। अब हम आपसे अहोई अष्टमी के पर्व के मनाने के बारे में बात करें तो विशेष रुप से अहोई अष्टमी का पर्व संतान की लंबी उम्र, समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य की कामना के लिए मनाया जाता हैं।

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अहोई अष्टमी के पर्व के पीछे कई धार्मिक और पौराणिक मान्यताएँ हैं। इनमें से एक प्रमुख कथा संबंधित हैं:-

पौराणिक कथा

एक वक्त की बात हैं एक गाँव में एक स्त्री अपने बच्चों के साथ सुखी जीवन बिता रही थी। दीपावली से पहले एक बार जब वह स्त्री जंगल से मिट्टी लेने गई तो गलती से उस स्त्री की खुरपी (मिट्टी खोदने का औज़ार) से एक साही (जंगली चूहा) के बच्चे की मृत्यु हो गई। इसी घटना के पश्चात्‌ स्त्री को इसका बहुत दुख हुआ लेकिन उस स्त्री ने इसे सामान्य भूल समझकर छोड़ दिया था।

कुछ वक्त बाद उसी स्त्री की संतान एक-एक कर मृत्यु होने लगी। इसे उस स्त्री ने अपने किए गए पाप का फल समझा। उस स्त्री ने अपने कष्टों से मुक्ति पाने और अपने बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए कई देवी-देवताओं की पूजा की।

एक दिन किसी से उस स्त्री को जानकारी मिली की अगर वह स्त्री अहोई माता का व्रत करेगी तो उस स्त्री की संतान की रक्षा होगी और उस स्त्री को संतान सुख प्राप्त होगा।

उस स्त्री ने कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई माता का व्रत रखा और पूजा की। व्रत के प्रभाव से उस स्त्री की संतान का जीवन सुरक्षित हुआ और उस स्त्री को आगे सुख-समृद्धि प्राप्त हुई।

अहोई अष्टमी मनाने का कारण

अहोई अष्टमी मनाने के निम्नलिखित कारण हैं:-

  • संतान की सुरक्षा:- अहोई अष्टमी का पर्व संतान की सुरक्षा और उनके दीर्घायु जीवन के लिए मनाया जाता हैं। अहोई अष्टमी के दिन माताएँ उपवास रखती हैं और संतान की समृद्धि की कामना करती हैं।
  • संतान सुख की प्राप्ति:- जो महिलाएँ संतान सुख से वंचित रहती हैं वो स्त्री इस व्रत को रखकर अहोई माता का आशीर्वाद प्राप्त करने की कामना करती हैं।
  • पारिवारिक सुख-समृद्धि:- अहोई अष्टमी का पर्व का व्रत पूरे परिवार के कल्याण के लिए किया जाता हैं। इससे परिवार में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती हैं।
  • मातृत्व का प्रतीक:- अहोइ अष्टमी का पर्व मातृत्व के प्रति श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक हैं। इस व्रत में माँ अपने बच्चों के लिए निस्वार्थ भाव से उपवास रखती हैं।

इसी प्रकार अहोई अष्टमी का पर्व माताओं की संतान के प्रति निष्ठा, प्रेम और समर्पण को बताता हैं। अहोई अष्टमी का पर्व उनके लिए एक विशेष धार्मिक अवसर के रुप में महत्तव रखता हैं। अब हम आपसे चर्चा करेंगे अहोई अष्टमी के पर्व के मनाने के बारे में।

आवश्यक जानकारी:- दीपावली का महापर्व

अहोई अष्टमी का पर्व कैसे मनाया जाता हैं?- Ahoi Ashtami ka parv kaise manaya jata hain?

अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं अहोई अष्टमी के पर्व के मनाने के बारे में। अब हम आपसे अहोई अष्टमी के पर्व के मनाने के बारे में बात करें तो मुख्य रुप से अहोई अष्टमी का पर्व माताएँ अपनी संतान की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य के लिए मनाती हैं।

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अहोई अष्टमी का दिन व्रत रखने के साथ-साथ अहोई माता की पूजा की जाती हैं। यहाँ निम्नलिखित तरीकों से अहोई अष्टमी का पर्व मनाया जाता हैं:-

व्रत का संकल्प

माताएँ सुबह जल्दी उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करती हैं। भगवान और अहोई माता को याद करके व्रत का संकल्प किया जाता हैं। अहोई माता का व्रत निर्जला या फलाहारी होता हैं यानी व्रती माताएँ दिनभर बिना भोजन और जल के रहती हैं।

अहोई माता की चित्रकारी

अहोई माता का चित्र दीवार पर या किसी साफ़ स्थान पर बनाया जाता हैं। इसे “अहोई माता की चौकी” कहा जाता हैं। इस चित्र में आठ कोष्ठक बनाए जाते हैं। इन कोष्ठक में से प्रत्येक कोष्ठक के अंदर अहोई माता के साथ उनके पुत्र, साही और चाँद-तारे आदि बनाए जाते हैं। बाज़ार में आजकल बने-बनाए अहोई माता के पोस्टर भी उपलब्ध होते हैं। पोस्टर को पूजा स्थल पर लगाया जाता हैं।

पूजन सामग्री

पूजा के लिए रोली, चावल, फूल, धूप, दीपक, मिठाई, जल, कच्चा दूध और तांबे या मिट्टी का करवा की जरुरत होती हैं। विशेष रुप से अहोई माता को भोग लगाने के लिए हलवा, पूड़ी, और अन्य पकवान बनाए जाते हैं।

अहोई माता की पूजा

पूजा का आयोजन संध्या समय में किया जाता हैं। पूजा में अहोई माता की कथा सुनाई जाती हैं। पूजा में अहोई माता को फूल, फल, दीप, धूप, चावल और मिठाई अर्पित की जाती हैं।

सात अन्न का इस्तेमाल पूजा के दौरान कर अहोई माता को अर्पित किया जाता हैं। माताएँ पूजा के समय हाथों में करवा लेकर अहोई माता की आराधना करती हैं और संतान की लंबी उम्र की प्रार्थना करती हैं।

कथा सुनना

अहोई माता की पौराणिक कथा का वाचन पूजा के बाद होता हैं। पौराणिक कथा सुनना और सुनाना दोनों शुभ माना जाता हैं। कथा सुनने से व्रत का पूरा फल प्राप्त होता हैं।

तारों के दर्शन

रात्रि में पूजा के बाद जब तारे आकाश में दिखाई देने लगते हैं तब व्रती महिलाएँ तारों को जल अर्पित करती हैं। महिलाएँ तारों को देखकर व्रत खोलती हैं। कुछ स्थानों पर चंद्रमा के दर्शन के पश्चात्‌ व्रत समाप्त करने का प्रचलन हैं।

व्रत का पारायण

तारों को अर्घ्य देने के बाद व्रती महिलाएँ अपने व्रत को समाप्त करती हैं। इन सब के बाद महिलाएँ जल और भोजन ग्रहण करती हैं।

जरुर जानें:- संतान सप्तमी की कथा के बारे में।

निष्कर्ष- Conclusion

ये हैं अहोई अष्टमी के पर्व से संबंधित जानकारियाँ हम आपसे आशा करते हैं की आपको जरुर पसंद आई होगी। जानकारी पसंद आने पर जानकारी को लाइक व कमेंट जरुर करें।

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