भैरव की कथा: शिव की न्यायकारी शक्ति का अवतार

Vineet Bansal

आज हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं भैरव की कथा के बारे में। अब हम आपसे भैरव की कथा के बारे में बात करें तो शिव जी के उग्र और रक्षक रुप का प्रतीक भैरव हैं। मुख्य रुप से भैरव की पूजा और साधना तंत्र मार्ग में की जाती हैं।

यह कहा जाता हैं की भैरव रुद्र के उस रुप का अवतार हैं तो बुराइयों का संहार करते हैं और भक्तों की रक्षा करते हैं। भैरव के आठ मुख्य रुपों को “अष्ट भैरव” कहा जाता हैं। अब हम आपसे चर्चा करेंगे शिव जी के भैरव के बारे में।

शिव जी के भैरव- Shiv ji ke Bhairav

अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं शिव जी के भैरव के बारे में। अब हम आपसे शिव जी के भैरव के बारे में बात करें तो शिव जी के उग्र और रक्षक रुप का प्रतीक भैरव हैं। भैरव को “काल भैरव” या “महाकाल” भी कहते हैं। भैरव समय और मृत्यु के स्वामी माने जाते हैं। शिव जी ने उग्र और रक्षक रुप मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को धारण किया था। इस दिन को कालभैरव जयंती या कालाष्टमी के नाम से मनाया जाता हैं।

shiv ji ke bhairav

मुख्य रुप से भैरव की पूजा और साधना तंत्र मार्ग में की जाती हैं। तंत्र ग्रंथों में भैरव को सृष्टि, स्थिति, संहार, तिरोभाव और अनुग्रह कार्यों का अधिपति दर्शाया गया हैं। यह माना जाता हैं की भैरव रुद्र के उस रुप का अवतार हैं जो बुराइयों का संहार करते हैं और भक्तों की रक्षा करते हैं।

भैरव के आठ मुख्य रुपों को “अष्ट भैरव” कहते हैं। भैरव के आठ मुख्य रुपों में “आनंद भैरव“, “रुद्र भैरव“, “कपाल भैरव“, “भिषण भैरव“, “संपूर्ण भैरव“, “भयंकर भैरव” और “संहार भैरव” प्रमुख हैं।

भैरव के ये आठ रुप जीवन के अलग-अलग पहलुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। जैसे की समृद्धि, सुरक्षा, न्याय, शांति आदि। भैरव की पूजा करने से भक्तों को भय, दुर्घटना, शत्रु, बाधा आदि से मुक्ति प्राप्त होती हैं। भक्तों को साहस, आत्मबल और शक्ति की प्राप्ति होती हैं। अब हम आपसे चर्चा करेंगे शिव जी के भैरव के नाम के बारे में।

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शिव जी के भैरव के नाम- Shiv ji ke Bhairav ke name

अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं शिव जी के भैरव के नाम के बारे में। अब हम आपसे शिव जी के भैरव के नाम के बारे में बात करें तो शिव जी के भैरव के आठ मुख्य रुपों को “अष्ट भैरव” भी कहते हैं।

shiv ji ke bhairav ke name

शिव जी के भैरव के ये आठ मुख्य रुप अलग-अलग शक्तियों और गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं। शिव जी के भैरव के नाम निम्नलिखित हैं:-

असितांग भैरव

रुद्र भैरव

चंड भैरव

क्रोध भैरव

उन्मत्त भैरव

कपाल भैरव

भीषण भैरव

संहार भैरव

शिव जी के भैरव के ये आठ मुख्य रुप विभिन्न दिशाओं और शक्तियों के रक्षक माने जाते हैं। शिव जी के भैरव के अनुयायी भैरव की पूजा अपने जीवन में साहस, सुरक्षा, शक्ति और समृद्धि प्राप्त करने के लिए करते हैं। अब हम आपसे चर्चा करेंगे शिव जी के भैरव की उपस्थिति के बारे में।

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शिव जी के भैरव की उपस्थिति- Shiv ji ke Bhairav ki upasthiti

अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं शिव जी के भैरव की उपस्थिति के बारे में। अब हम आपसे शिव जी के भैरव की उपस्थिति के बारे में बात करें तो शिव जी के भैरव रुप को अति उग्र, रहस्यमयी और डरावना माना जाता हैं।

shiv ji ke bhairav ki upasthiti

शिव जी के भैरव की उपस्थिति भयभीत करने वाली होती हैं। भैरव की उपस्थिति शिव जी के संहारक और रक्षक रुप को बताती हैं। शिव जी के भैरव की उपस्थिति इस प्रकार हैं:-

  • अंगभूषण:- शिव जी के भैरव के शरीर पर राख लगी होती हैं। शिव जी के भैरव का शरीर अक्सर काले या नीले रंग का होता हैं। शिव जी के भैरव के सिर पर जटाजूट होती हैं।
  • सिर पर गहने:- शिव जी के भैरव के गले में मुंडमाला होती हैं। भैरव के गले में मुंडमाला शिव जी की संहारक शक्ति का प्रतीक होता हैं।
  • अधिक भुजाएँ:- शिव जी के भैरव के कई रुपों में भैरव को चार, आठ या दस भुजाओं के साथ दिखाया गया हैं। शिव जी के भैरव के प्रत्येक हाथ में त्रिशूल, डमरु, तलवार, खड्ग और अलग-अलग तांत्रिक वस्त्र होते हैं।
  • वस्त्र:- सामान्य रुप से भैरव बहुत कम वस्त्र धारण करते हैं। सामान्य रुप से भैरव भस्म से सजी देह के साथ दिखाए जाते हैं। शिव जी के भैरव की उपस्थिति दिगंबर रुप में होती हैं। शिव जी के भैरव का दिगंबर रुप शिव जी की निर्लेप और निराकर स्थिति को बताता हैं।
  • वाहन:- शिव जी के भैरव का वाहन कुत्ता हैं। कुत्ता शिव जी के भैरव की वफादारी, रक्षक प्रवृत्ति और शक्तिशाली रुप का प्रतीक होता हैं। कुत्ते को शिव जी के भैरव के साथ हर समय दिखाया जाता हैं।
  • आँखों और मुद्रा:- शिव जी के भैरव की आँखें अत्यंत उग्र होती हैं। शिव जी के भैरव क्रोध भरी मुद्रा में होते हैं। शिव जी के भैरव के स्वरुप में ऐसा भाव हैं जो बुराइयों का संहार करता हैं।
  • भैरव का श्रृंगार:- शिव जी के भैरव के स्वरुप में गले में रुद्राक्ष माला, भैरव के सिर पर चंद्रमा का अर्धभाग और भाले जैसे वस्तुएँ होती हैं। शिव जी के भैरव की वस्तुएँ शिव जी के तप, ज्ञान और शक्ति को प्रकट करने लगती हैं।

शिव जी के भैरव की उपस्थिति शिव जी के भैरव के अनुयायियों में भय और शक्ति का संचार करती हैं। उनकी उपस्थिति यह बताती हैं की शिव जी के भैरव अपने भक्तों की रक्षा के लिए किसी भी प्रकार की कठिनाई का सामना करते हैं। अब हम आपसे चर्चा करेंगे शिव जी के भैरव की कहानी के बारे में।

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शिव जी के भैरव की कहानी- Shiv ji ke Bhairav ki kahani

अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं शिव जी के भैरव की कहानी के बारे में। अब हम आपसे शिव जी के भैरव की कहानी के बारे में बात करें तो विशेष रुप से शिव जी के भैरव रुप की कहानी एक घटना से जुड़ी हुई हैं।

shiv ji ke bhairav ki kahani

इस घटना को “ब्रह्महत्या” कथा भी कहते हैं। इस घटना की कहानी शिव के भैरव रुप के उत्पत्ति की व्याख्या करती हैं। यह कहानी बताती हैं की शिवजी के इस उग्र रुप का उद्देश्य क्या था?

कथा का सारांश

एक बार ब्रह्मा, विष्णु और महादेव के बीच यह बातचीत हो रही थी की इस सृष्टि में सबसे ज्यादा महान और सर्वोच्च देवता कौन हैं? इसी दौरान ब्रह्मा ने अपनी सृष्टिकर्ता शक्ति का अभिमान किया और महादेव का बहुत अपमान किया। ब्रह्मा जी के अंहकार में ब्रह्मा जी के या भी कह दिया की ब्रह्मा शिव जी से श्रेष्ठ हैं और खुद को सृष्टि का सर्वोच्च मानने लगे।

शिव जी को ब्रह्मा जी के इस अभिमान को समाप्त करना था क्योंकि शिव जी ने सभी देवताओं के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए यह जरुरी समझा। शिव जी ने ब्रह्मा जी के अभिमान को समाप्त करने के लिए अपने तीसरे नेत्र को खोलते हुए अपने अंदर से एक उग्र और क्रोधमुक्त ऊर्जा का सृजन किया था। इसे भैरव कहा जाता हैं।

भैरव के स्वरुप में महादेव अति डरावने लगे थे। महादेव के चेहरे पर गहरा क्रोध और आँखों में संहार की ज्वाला थी। भैरव ने ब्रह्मा का पीछा किया और ब्रह्मा की पाँचवीं सिर को अपने खड़्ग से अलग कर दिया था। ब्रह्मा जी का पाँचवा सिर ब्रह्मा जी की अति अंहकार का प्रतीक था। ब्रह्मा जी के पाँचवें सिर को हटाकर शिव जी ने ब्रह्मा को सबक सिखाया था।

इसी कार्य के कारण भैरव को ब्रह्महत्या का दोष लग गया था। भैरव को पाप से मुक्त होने के लिए कपाल को धारण कर कई तीर्थ स्थानों की यात्रा करनी पड़ी थी। इसी दौरान भैरव ने काशी में प्रवास किया। काशी में भैरव का ब्रह्महत्या का दोष समाप्त हुआ था।

काशी में भैरव का महत्तव

काशी में भैरव को रक्षक के रुप में पूजा जाता हैं। यह माना जाता हैं की कोई भी भक्त बिना भैरव की अनुमति के काशी में प्रवेश नहीं कर सकता हैं। भैरव को काशी में प्रवेश करने से लेकर भक्तों की सुरक्षा और पापों के निवारण के लिए अत्यंत शक्तिशाली रक्षक माना जाता हैं।

भैरव की पूजा का उद्देश्य

भैरव की कथा से हमें यह संदेश मिलता हैं की अंहकार और अधर्म को समाप्त करने के लिए शिव जी ने भैरव का रुप धारण किया था। भैरव का यह स्वरुप हमें यह सिखाता हैं की विनाश सिर्फ बुराई का होता हैं और जो धर्म का सही प्रकार से पालन करता हैं उसे भैरव का आशीर्वाद अवश्य प्राप्त होता हैं।

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निष्कर्ष- Conclusion

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