आज हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं छठी मईया और सूर्य देव की आराधना के पर्व के बारे में। अब हम आपसे छठी मईया और सूर्य देव की आराधना के पर्व के बारे में बात करें तो हिंदू धर्म में छठ पूजा का एक अलग महत्तव हैं।
मुख्य रुप से छठ पूजा का पर्व सूर्य देवता और छठी मईया की आराधना के लिए मनाया जाता हैं। छठ पूजा का पर्व कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता हैं। अब हम आपसे चर्चा करेंगे छठ पूजा के आने के बारे में।
छठ पूजा कब आती हैं?- Chhath Puja kab aati hain?
अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं छठ पूजा के आने के बारे में। अब हम आपसे छठ पूजा के आने के बारे में बात करें तो मुख्य रुप से छठ पूजा का पर्व दीपावली के छह दिन बाद आता हैं। छठ पूजा का पर्व कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता हैं।
आमतौर पर छठ पूजा का पर्व अक्टूबर या नवंबर के महीने में ही आता हैं। इस वर्ष 2024 में छठ पूजा का पर्व 7 नवंबर 2024 को मनाया जाएगा। छठ पूजा का पर्व चार दिनों का पर्व होता हैं।
इस पर्व में पहले दिन नहाय-खाय, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन संध्या अर्घ्य और चौथे दिन सुबह अर्घ्य दिया जाता हैं। अब हम आपसे चर्चा करेंगे छठ पूजा के पर्व के महत्तव के बारे में।
अब पांच दिनों बाद आने वाला हैं दीपावली का त्योहार। तो आप जरुर जानिए दीपावली के त्योहार के महत्तव के बारे में।
छठ पूजा के पर्व का महत्तव- Chhath Puja ke parv ka mahatv
अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं छठ पूजा के पर्व के महत्तव के बारे में। अब हम आपसे छठ पूजा के पर्व के महत्तव के बारे में बात करें तो हिंदू धर्म में छठ पूजा का एक अलग महत्तव हैं।
विशेषकर बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ हिस्सों में छठ पूजा का एक अलग महत्तव हैं। मुख्य रुप से छठ पूजा का पर्व सूर्य देवता और छठी मईया की आराधना के लिए मनाया जाता हैं। छठ पूजा के पर्व के महत्तव निम्नलिखित हैं:-
सूर्य देव की आराधना
छठ पूजा का त्योहार सूर्य देवता को समर्पित होता हैं। सूर्य देवता जीवन के लिए ऊर्जा और स्वास्थ्य के स्त्रोत माने जाते हैं। सूर्य देव स्वास्थ्य, दीर्घायु और परिवार की सुख-समृद्धि का प्रतीक हैं। छठ पूजा में डूबते और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने का एक अलग महत्तव हैं।
पर्यावरण के प्रति श्रद्धा
छठ पूजा के पर्व का आयोजन नदी, तालाब और प्राकृतिक जल स्त्रोतों के किनारे किया जाता हैं। छठी मईया की पूजा के दौरान स्वच्छता का खास ध्यान रखा जाता हैं। इससे प्रकृतिक के प्रति श्रद्धा और समर्पण का संदेश प्राप्त होता हैं। छठ पूजा का पर्व लोगों को जल स्त्रोतों की महत्ता और स्वच्छता का भी संदेश देता हैं।
संयम और आत्म-शुद्धि
छठ पूजा का व्रत एक कठिन व्रत होता हैं। इस व्रत में व्रतधारी चार दिनों तक बिना अन्न और जल के उपवास रखा करते हैं। छठी मईया का उपवास शरीर और आत्मा की शुद्धि का प्रतीक होता हैं। इस उपवास में संयम और मानसिक शक्ति की परीक्षा होती हैं। यह परीक्षा भक्तों को मानसिक दृढ़ता और आत्मनियंत्रण का महसूस कराती हैं।
पारिवारिक एकता और सामाजिक समरसता
छठ पूजा के दिन परिवार और समाज के लोग मिलकर अनुष्ठान करते हैं। सामूहिक रुप से लोग घाट पर इकट्ठा होते हैं और साथ मिलकर सूर्य देवता की पूजा करा करते हैं। सूर्य देवता की पूजा से परिवार और समाज में एकता का वातावरण बना रहता हैं और आपसी सहयोग का भाव प्रबल हो सकता हैं।
छठी मइया का आशीर्वाद
लोगों का ऐसा मानना हैं की छठी मइया बच्चों की रक्षा करती हैं। छठी मईया बच्चों की लंबी उम्र का आशीर्वाद देती हैं। छठ पूजा का पर्व महिलाओं और बच्चों की सुख-समृद्धि के लिए एक विशेष महत्तव रखता हैं।
यह कहा जाता हैं की छठी मईया की पूजा करने से संतान सुख की प्राप्ति होती हैं और परिवार में खुशियाँ आने लगती हैं। इसी प्रकार छठ पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि प्रकृति, परिवार और समाज के साथ जुड़ाव का भी प्रतीक होता हैं। अब हम आपसे चर्चा करेंगे छठ पूजा के पर्व के मनाने के बारे में।
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छठ पूजा का पर्व क्यों मनाया जाता हैं?- Chhath Puja ka parv kyon manaya jata hain?
अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं छठ पूजा के पर्व के मनाने के बारे में। अब हम आपसे छठ पूजा के पर्व के मनाने के बारे में बात करें तो मुख्य रुप से छठ पूजा का पर्व सूर्य देवता और छठी मइया की आराधना के लिए मनाया जाता हैं।
छठ पूजा के पर्व को मनाने के पीछे धार्मिक, पौराणिक और लोक मान्यताएँ जुड़ी हुई हैं। छठ पूजा के पर्व का आयोजन करने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:-
पौराणिक कथाएँ
- रामायण से जुड़ी कथा:- यह माना जाता हैं की भगवान श्रीराम और माता सीता ने लंका विजय के बाद सूर्य देवता की पूजा की थी और अयोध्या लौटने पर उन्होंगे कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित किया था। इन सब के बाद छठ पूजा का पर्व मनाने की परंपरा की शुरुआत हुई थी।
- महाभारत से जुड़ी कथा:- महाभारत की कथा के अनुसार महाभारत काल में पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने मुश्किल समय में छठ पूजा का व्रत रखा था। इस व्रत से द्रौपदी के परिवार के सभी कष्ट दूर हो गए थे। तभी से यह माना जाता हैं की छठ पूजा का व्रत सभी दुखों और कष्टों को हर लेता हैं।
पर्यावरणीय और प्राकृतिक महत्तव
प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का छठ पूजा का पर्व हैं। इस पर्व को नदियों, तालाबों और जल स्त्रोतों के किनारे मनाया जाता हैं। इससे हमें जल की शुद्धता और महत्तव को समझाने का संदेश प्राप्त होता हैं।
छठ पूजा के व्रत में स्वच्छता का खास ध्यान रखा जाता हैं। इससे पर्यावरण के प्रति श्रद्धा और पर्यावरण की रक्षा का भाव जाग्रत होता हैं। अब हम आपसे चर्चा करेंगे छठ पूजा के पर्व के मनाने के बारे में।
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छठ पूजा का पर्व कैसे मनाया जाता हैं?- Chhath Puja ka parv kaise manaya jata hain?
अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं छठ पूजा के पर्व के मनाने के बारे में। अब हम आपसे छठ पूजा के पर्व के मनाने के बारे में बात करें तो चार दिनों तक छठ पूजा का पर्व चलता हैं।
इस पर्व में विशेष नियमों, रीति-रिवाज़ों और परंपराओं का पालन किया जाता हैं। छठ पूजा का पर्व व्रतधारी और उसके परिवार के सदस्य पूरी श्रद्धा से अनुष्ठान को संपन्न करते हैं। छठ पूजा को निम्नलिखित तरीकों से मनाया जाता हैं:-
पहला दिन: नहाय-खाय
छठ पूजा के पर्व के पहले दिन को नहाय-खाय कहते हैं। छठ पूजा के पहले दिन व्रतधारी गंगा या किसी अन्य पवित्र नदी के जल से स्नान किया करते हैं और पूरी स्वच्छता से भोजन तैयार किया करते हैं। छठ पूजा के पर्व के पहले दिन व्रतधारी कद्दू-भात और चने की दाल का भोजन करते हैं।
यह भोजन शुद्धता और सात्विकता का प्रतीक माना जाता हैं जो व्रतधारी के शरीर को शुद्ध करने का काम करता हैं। नहाय-खाय के बाद व्रतधारी अपने पूरे परिवार के साथ भोजन किया करते हैं और भोजन करने के बाद अगले दिन के लिए व्रत की तैयारी करते हैं।
दूसरा दिन: खरना
छठ पूजा के व्रत के दूसरे दिन को खरना कहते हैं। इस पर्व के दूसरे दिन व्रतधारी दिनभर उपवास करते हैं और शाम को सूर्यास्त के बाद पूजा करने के बाद व्रत का प्रसाद ग्रहण करते हैं।
व्रत के प्रसाद में गुड़ और चावल से बनी खीर, रोटी और फल शामिल होते हैं। व्रतधारी प्रसाद ग्रहण करने के बाद अगले 36 घंटों के निर्जला व्रत का संकल्प लेते हैं। खरना की पूजा में शुद्धता और पवित्रता का खास ध्यान रखा जाता हैं। खरना के दिन परिवार के सदस्य उपवास में शामिल होते हैं।
तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य
छठ पूजा के व्रत के तीसरे दिन को संध्या अर्घ्य कहते हैं। संध्या अर्घ्य में व्रतधारी डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। संध्या अर्घ्य के दिन व्रतधारी तालाब, नदी या किसी जल स्त्रोत के किनारे इकट्ठा होते हैं।
पूजा के लिए व्रतधारी बांस की टोकरी में फलों, ठेकुआ, कसार और अन्य पूजन सामग्री को सजाने लगते हैं। इन सब के बाद व्रतधारी पूरे परिवार के साथ सूर्य देव की पूजा करते हैं। व्रतधारी संध्या अर्घ्य देने के बाद पुरी रात जागकर भजन और कीर्तन करते हैं। इससे आध्यात्मिक ऊर्जा मिलती हैं।
चौथा दिन: उषा अर्घ्य
छठ पूजा के पर्व के चौथे दिन को उषा अर्घ्य कहते हैं। उषा अर्घ्य के दिन व्रतधारी सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं। उषा अर्घ्य के दिन सभी व्रतधारी और उनके परिवार के सदस्य सुबह-सुबह जल स्त्रोत पर पहुँचते हैं। व्रतधारी सूर्योदय के समय सूर्य देव को जल चढ़ाते हैं।
व्रतधारी सूर्य देव को जल चढ़ाने के बाद संतान, परिवार और समाज के कल्याण की प्रार्थना करते हैं। उषा अर्घ्य की पूजा सूर्य देव और छठी मईया के आशीर्वाद की प्राप्त करने की आखिरी चरण होता हैं। व्रतधारी उषा अर्घ्य के बाद अपने व्रत को तोड़ते हैं और प्रसाद ग्रहण करते हैं। इन सब के साथ छठ पूजा के पर्व का समापन होता हैं।
आवश्यक जानकारी:- एकादशी के व्रत का महत्तव।
निष्कर्ष- Conclusion
ये हैं छठ पूजा के पर्व से संबंधित जानकारियाँ हम आपसे आशा करते हैं की आपको जरुर पसंद आई होगी। जानकारी पसंद आने पर जानकारी को लाइक व कमेंट जरुर करें।
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