आज हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं ज़ोरा फिल्म के बारे में। अब हम आपसे ज़ोरा फिल्म के बारे में बात करें तो अर्जुन रामपाल के साथ फिल्म असंभव और विश्वात्मा जैसी फिल्में बनाने वाले निर्देशक राजीव राय ने 21 साल बाद फिल्म ज़ोरा से बॉलीवुड में वापसी की हैं। राजीव राय की ये फिल्म क्राइम बेस्ड हैं।
राजीव राय ने करीब 21 साल के अंतराल के बाद निर्देशन में वापसी की हैं। इन 21 सालों में फिल्म इंडस्ट्री ही नहीं दुनिया में तकनीक स्तर पर भी काफी बदलाव हुए हैं। उनकी कमबैक फिल्म ज़ोरा को देखते हुए लगता हैं की वह समय के साथ कदमताल में पीछे रह गए हैं। यहाँ वह अपना पुराना जादू जगा पाने में असफल रहे हैं।
फिल्म रिलीज़ होने से पहले राजीव ने अपने साक्षात्कार में कहा था की यह फिल्म उन्होंने केवल दो करोड़ रुपये के बजट में बनाई हुई हैं। बजट फिल्म का अहम भाग होता हैं, लेकिन मज़बूती कहानी, चुस्त स्क्रीनप्ले के साथ कलाकार की अदायगी उसको दर्शनीय बनाती हैं। इन सब मोर्चों पर यह फिल्म विफल साबित हुई हैं। इस फिल्म के ज्यादातर चेहरे अपरिचित हैं। घटनाक्रम भी बेतुके हैं।
क्या हैं फिल्म ‘ज़ोरा’ की कहानी?- Kya hain film zora ki kahani?
साल 2003 में जयपुर में सेट कहानी का आरम्भ होता हैं। ईमानदार इंस्पेक्टर विराट सिंह नकली स्टाम्प पेपर छापने वाले एक गिरोह का पर्दाफाश करता हैं लेकिन ज़ोरा नामक महिला उसको मार देती हैं। ज़ोरा ने टोपी और मास्क पहनकर अपने चेहरे को छुपा रखा हैं।
विराट का 13 साल का बेबस बेटा रंजीत सिंह अपने आँखों के सामने अपने पिता की हत्या होते हुए देखता हैं। यह कहानी वर्तमान में आती हैं। सब इंस्पेक्टर रंजीत सिंह एक अवैध ड्रग रैकेट का भंडाफोड़ करके कानून को अपने हाथ में ले लेता हैं। यह बात उसके वरिष्ठ अधिकारी इकबाल को बिल्कुल भी पसंद नहीं आती हैं। इन दोनों के बीच यह मतभेद की वजह बनती हैं।
इसी बीच रंजीत को अपने पिता की हत्या के दौरान मौजूद लोगों का पता चलता हैं। अभी वह ज़ोरा तक पहुँचना चाहता हैं। लेखक, निर्देशक, संपादक के साथ निर्माता राजीव राय की यह सस्पेंस ड्रामा ज़ोरा कौन हैं? इसी रहस्य पर टिकी हुई हैं। इस फिल्म को देखते हुए लगता हैं की राजीव पिछली सदी के नौवें दशक से निकल नहीं पाए हैं।
इस फिल्म का निर्माण की शैली में वह काफी पिछड़ दिखते हैं। इस फिल्म की कहानी में कोई नवीनता नहीं हैं। ज़ोरा को पकड़ने को लेकर इकबाल और फोरेंसिक विशेषज्ञ के बीच संबंधों का प्रसंग अनावश्यक लगता हैं। इस फिल्म को देखते हुए लगता हैं की टीवी पर कोई क्राइम शो देख रहे हैं।
जानिए सलाकार वेब सीरिज़ की कहानी के बारे में।
ज़ोरा लगी धैर्य की परीक्षा- Zora lagi dhairya ki pariksha
पलक मुच्छल का शीर्षक गीत कहानी साथ सुसंगत हैं। विजू शाह का बैंकग्राउंड स्कोर प्रभावहीन हैं। ज़ोरा आपके धैर्य की काफि परीक्षा लेते हैं।
अंतिम सीन सच में डर पैदा करता हैं जिसमें अगले साल एक जनवरी को इसकी सीक्वल ‘ज़ोरा ज़ोरावर’ लाने की जानकारी दी गई हैं।
आवश्यक जानकारी:- अंदाज़ 2 फिल्म की कहानी के बारे में।
निष्कर्ष- Conclusion
ये हैं ज़ोरा फिल्म से संबंधित जानकारियाँ हम आपसे आशा करते हैं की आपको जरुर पसंद आई होगी। इस जानकारी से आपको ज़ोरा फिल्म के बारे में हर प्रकार की जानकारियाँ हासिल होंगी।
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