आज हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं धारी देवी के बारे में। अब हम आपसे धारी देवी के बारे में बात करें तो धारी देवी मंदिर उत्तराखंड राज्य के श्रीनगर में स्थित हैं। इस मंदिर को “गढ़वाल की रक्षा देवी” भी कहते हैं। यह मंदिर राष्ट्रीय राजमार्ग 58 पर अलकनंदा नदी के बीच एक चट्टान पर स्थित हैं।
मुख्य रुप से यहाँ माता काली की आधी प्रतिमा स्थापित हैं। स्थानीय मान्यता यह हैं की माता का निचला भाग कालीमठ में विराजमान हैं। अब हम आपसे चर्चा करेंगे धारी देवी मंदिर के परिचय के बारे में।
धारी देवी मंदिर का परिचय- Dhari Devi Mandir ka parichay
अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं धारी देवी के परिचय के बारे में। अब हम आपसे धारी देवी के परिचय के बारे में बात करें तो धारी देवी मंदिर उत्तराखंड राज्य के पौड़ी गढ़वाल ज़िले के श्रीनगर कस्बे के पास अलकनंदा नदी के किनारे स्थित एक अति प्राचीन और पूजनीय शक्तिपीठ हैं।
इस मंदिर को “गढ़वाल की रक्षा देवी” भी कहते हैं। यह मंदिर एक चट्टानी द्वीप जैसे स्थल पर बना हैं, जहाँ माता काली के उग्र रुप का ऊपरी भाग विराजमान हैं। यहाँ स्थानीय मान्यता हैं की माता का निचला भाग रुद्रप्रयाग जिले के कालीमठ में स्थापित हैं।
श्रद्धालु की यह मान्यता हैं की माता धारी देवी सम्पूर्ण गढ़वाल क्षेत्र की रक्षा करती हैं। अब हम आपसे चर्चा करेंगे धारी देवी मंदिर के स्थान एवं भौगोलिक स्थिति के बारे में।
जानिए जीवदानी माता मंदिर की पौराणिक कहानी के बारे में।
धारी देवी मंदिर के स्थान एवं भौगोलिक स्थिति- Dhari Devi Mandir ke sthan aur bhaugolik sthiti
अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं धारी देवी मंदिर के स्थान एवं भौगोलिक स्थिति के बारे में। अब हम आपसे धारी देवी मंदिर के स्थान एवं भौगोलिक स्थिति के बारे में बात करें तो धारी देवी मंदिर उत्तराखंड राज्य के पौड़ी गढ़वाल जिले में स्थित हैं। यह मंदिर श्रीनगर से लगभग 14-15 किलोमीटर की दूरी पर राष्ट्रीय राजमार्ग-58 पर श्रीनगर-रुद्रप्रयाग मार्ग पर पड़ता हैं।
यह मंदिर अलकनंदा नदी के बीचों-बीच एक चट्टान पर बना हुआ हैं और यहाँ तक पहुँचने के लिए नदी पर बने पुल से होकर जाना पड़ता हैं। समुद्र तल से इसकी ऊँचाई लगभग 600 मीटर हैं।
यहाँ आसपास की हरी-भरी पहाड़ियाँ, बहती अलकनंदा और शांत वातावरण इस स्थान को अति रमणीय और आध्यात्मिक बनाते हैं। अब हम आपसे चर्चा करेंगे धारी देवी के धार्मिक और आध्यात्मिक महत्तव के बारे में।
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धारी देवी के धार्मिक और आध्यात्मिक महत्तव- Dhari Devi ke dharmik aur adhyatmik mahatva
अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं धारी देवी के धार्मिक और आध्यात्मिक महत्तव के बारे में। अब हम आपसे धारी देवी के धार्मिक और आध्यात्मिक महत्तव के बारे में बात करें तो धारी देवी मंदिर को गढ़वाल क्षेत्र की रक्षक देवी कहा जाता हैं।
माता का ये स्वरुप देवी काली के उग्र स्वरुप का ऊपरी भाग हैं, जबकि निचला भाग रुद्रप्रयाग जिले के कालीमठ में विराजमान हैं।
स्थानीय परंपराओं के अनुसार माता धारी देवी प्राकृतिक आपदाओं और संकटों से गढ़वाल की रक्षा करती हैं। यह कहा जाता हैं की बिना माता के दर्शन किए बद्रीनाथ यात्रा अधूरी मानी जाती हैं।
श्रद्धालु लोग यह मानते हैं की धारी देवी अपने भक्तों को दुख, संकट और नकारात्मक शक्तियों से बचाती हैं और उनकी रक्षा करती हैं। यहाँ पूजा-अर्चना करने से आत्मिक शांति, शक्ति और मानसिक स्थिरता प्राप्त होती हैं। अब हम आपसे चर्चा करेंगे धारी देवी मंदिर से जुड़ी मान्यताएँ और पौराणिक कथाएँ के बारे में।
धारी देवी मंदिर से जुड़ी मान्यताएँ और पौराणिक कथाएँ- Dhari Devi Mandir se judi manyata aur pauranik katha
अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं धारी देवी मंदिर से जुड़ी मान्यताएँ और पौराणिक कथाएँ के बारे में।
यहाँ धारी देवी मंदिर से जुड़ी मान्यताएँ और पौराणिक कथाएँ निम्नलिखित हैं:-
- प्राचीन प्रतिमा की उत्पत्ति:- यह माना जाता हैं की प्राचीन काल में एक भयंकर बाढ़ आई, जिसमें माता काली की एक प्रतिमा अलकनंदा नदी में बहकर यहाँ की चट्टान पर आई। स्थानीय लोगों ने इस चट्टान को दिव्य संकेत मानकर यहीं माता को स्थापित किया।
- ऊपरी व निचला भाग:- श्रद्धालुओं का विश्वास हैं की माता धारी देवी का ऊपरी भाग इस मंदिर में हैं और निचला भाग रुद्रप्रयाग जिले के कालीमठ में विराजमान हैं। इसीलिए इन दोनों स्थानों को शक्तिपीठ का रुप माना जाता हैं।
- गढ़वाल की रक्षक देवी:- यह कहा जाता हैं की आपदाओं और संकटों से बचाती हैं। 2013 में केदारनाथ आपदा से पहले इस मंदिर को स्थानांतरित किया था और उस रात भीषण आपदा आई थी। इसलिए श्रद्धालु मानते हैं की माता की इच्छा के बिना मंदिर को नहीं हटाना चाहिए।
- यात्रा की पूर्णता:- बद्रीनाथ, केदारनाथ और आसपास के प्रमुख तीर्थों की यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालु धारी देवी के दर्शन को अनिवार्य मानते हैं, क्योंकि बिना उसके आशीर्वाद के यात्रा को अधूरा माना जाता हैं।
अब हम आपसे चर्चा करेंगे धारी देवी मंदिर के इतिहास और विशेषताएँ के बारे में।
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धारी देवी मंदिर के इतिहास और विशेषताएँ- Dhari Devi Mandir ke itihas aur visheshata
अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं धारी देवी मंदिर के इतिहास और विशेषताएँ के बारे में।
अब हम आपसे धारी देवी मंदिर के इतिहास और विशेषताएँ के बारे में बात करें तो धारी देवी मंदिर का इतिहास और विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:-
इतिहास
धारी देवी मंदिर को शताब्दियों पुराना माना जाता हैं। स्थानीय लोककथाओं के अनुसार एक बार अलकनंदा में आई बाढ़ के दौरान देवी काली की मूर्ति बहकर यहाँ आई थी। ग्रामीणों ने इस मूर्ति को दिव्य संकेत मानकर उसी चट्टान पर स्थापित किया था।
यह मंदिर गढ़वाल की रक्षक देवी के रुप में प्र्सिद्ध हुआ और बद्रीनाथ-केदारनाथ जैसे बड़े तीर्थों की यात्रा से पहले यहाँ दर्शन की परंपरा बनी थी।
2013 में श्रीनगर जलविद्युत परियोजना के कारण इस मंदिर को ऊँचाई पर स्थानांतरित किया गया था। उस दिन उत्तराखंड में भीषण आपदा हुई थी। इसको लोग माता की शक्ति और असंतोष से जोड़ते हैं।
विशेषताएँ
धारी देवी मंदिर अलकनंदा नदी के बीच चट्टान पर स्थित हैं, जहाँ पहुँचने के लिए पैदल पुल बना हैं। इस मंदिर में माता काली के उग्र स्वरुप का ऊपरी भाग विराजमान हैं, जबकि निचला भाग रुद्रप्रयाग के कालीमठ में हैं।
इस मंदिर की निम्न-स्तरीय, पारंपरिक पहाड़ी शैली की वास्तुकला हैं, जिसमें लकड़ी और पत्थर का इस्तेमाल हुआ हैं। यह स्थान धार्मिक के साथ-साथ सौंदर्य दृश्य के लिए भी प्रसिद्ध हैं- चारों और हरी-भरी पहाड़ियाँ और अलकनंदा का तेज़ प्रवाह वातावरण को अति आध्यात्मिक बनाता हैं। बिना यहाँ के दर्शन किए गढ़वाल की प्रमुख यात्राएँ अधूरी मानी जाती हैं।
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निष्कर्ष- Conclusion
ये हैं धारी देवी माता मंदिर से संबंधित जानकारियाँ हम आपसे आशा करते हैं की आपको जरुर पसंद आई होगी। इस जानकारी से आपको धारी देवी मंदिर की विशेषताएँ से संबंधित हर प्रकार की जानकारियाँ प्राप्त होंगी।
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