खाटू श्याम जी: कलियुग के देवता और भक्तों का सहारा

Vineet Bansal

आज हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं खाटू श्याम मंदिर के बारे में। अब हम आपसे खाटू श्याम मंदिर के बारे में बात करें तो खाटू श्याम मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में स्थित हैं।

खाटू श्याम जी को भगवान श्रीकृष्ण के कलियुग अवतार के रुप में पूजा जाता हैं। खाटू श्याम जी को बारहवें पांडव भी कहते हैं। इनका वास्तविक नाम बर्बरीक था। बर्बरीक भीम के पौते और घटोत्कच के पुत्र थे। अब हम आपसे चर्चा करेंगे खाटू श्याम मंदिर की खासियत के बारे में।

खाटू श्याम मंदिर की खासियत- Khatu Shyam mandir ki khasiyat

अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं खाटू श्याम मंदिर की खासियत के बारे में। अब हम आपसे खाटू श्याम की खासियत के बारे में बात करें तो खाटू श्याम मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में स्थित एक धार्मिक स्थल हैं।

khatu shyam mandir ki khasiyat

खाटू श्याम जी को भगवान श्रीकृष्ण के कलियुग अवतार के रुप में पूजा जाता हैं। खाटू श्याम मंदिर को श्रीखाटू श्याम का मुख्य मंदिर माना जाता हैं। खाटू श्याम मंदिर की खासियतें निम्नलिखित हैं:-

श्री खाटू श्याम की कथा

खाटू श्याम जी को बारहवें पांडव कहते हैं। खाटू श्याम का वास्तविक नाम बर्बरीक था। बर्बरीक भीम के पौते और घटोत्कच के पुत्र थे। महाभारत के युद्ध में खाटू श्याम जी ने अपनी अद्वितीय भक्ति और बलिदान का परिचय दिया था।

खाटू श्याम जी की भक्ति और समर्पण से प्रभावित होकर भगवान कृष्ण ने खाटू श्याम जी को वरदान दिया की कलियुग में वे “श्याम” जी के नाम में पूजे जाएंगे।

मूर्ति की दिव्यता

खाटू श्याम जी की मूर्ति काले रंग की होती हैं। खाटू श्याम जी को अत्यंत दिव्य और आकर्षक माना जाता हैं। उनकी मूर्ति कुरुक्षेत्र से लाई गई थी और मंदिर में उनकी मूर्ति प्रतिष्ठित की गई थी।

शक्तिशाली मान्यता

खाटू श्याम मंदिर भक्तों की मनोकामनाएँ पूरी करने के लिए प्रसिद्ध माना जाता हैं। हर साल लाखों श्रद्धालु भक्त खाटू श्याम मंदिर में अपनी इच्छाओं की पूर्ति हेतु आते हैं। इस मंदिर में “श्याम बाबा” को हारे का सहारा कहते हैं।

फाल्गुन मेला

हर वर्ष खाटू श्याम मंदिर में फाल्गुन मास में एक विशाल मेला आयोजित किया जाता हैं। इसी दौरान लाखों श्रद्धालु भक्त खाटू नगरी में दर्शन करने के लिए आते हैं। खाटू श्याम मंदिर में भक्त पैदल यात्रा करके पहुँचते हैं। इसे “श्याम पदयात्रा” भी कहते हैं।

मंदिर की स्थापत्य कला

इस मंदिर की बनावट अत्यंत सुंदर और राजस्थानी शैली में हैं। इस मंदिर की भव्यता को चांदी के दरवाज़े और संगमरमर से बने फर्श बढ़ाते हैं।

पूजा और प्रसाद

मुख्य रुप से इस मंदिर में गुलाब की माला, काले तिल और नारियल चढ़ाने की परंपरा रखी गई हैं। यहाँ प्रसाद के रुप में खीर और चूरमा दिया जाता हैं।

सांस्कृतिक महत्तव

यह मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं हैं। खाटू श्याम मंदिर भारतीय संस्कृति, भक्ति और समर्पण का प्रतीक माना जाता हैं। अब हम आपसे चर्चा करेंगे खाटू श्याम मंदिर की कहानी के बारे में।

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खाटू श्याम मंदिर की कहानी- Khatu Shyam mandir ki kahani

अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं खाटू श्याम मंदिर की कहानी के बारे में। अब हम आपसे खाटू श्याम मंदिर की कहानी के बारे में बात करें तो खाटू श्याम मंदिर की कहानी महाभारत के युद्ध और महाभारत की कथा से जुड़े बर्बरीक के चरित्र पर आधारित हैं।

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बर्बरीक की कहानी भगवान श्रीकृष्ण के भक्तों और उनकी भक्ति के महत्तव को बताती हैं। अब हम जानेंगे की बर्बरीक कौन थे?

बर्बरीक कौन थे?

खाटू श्याम जी यानी की बर्बरीक महान योद्धा घटोत्कच और नागकन्या अहिलावती के पुत्र थे। बर्बरीक शिव जी के परम भक्त थे और बर्बरीक को दिव्य बल का वरदान प्राप्त था।

बर्बरीक ने बचपन से ही तीन अमोघ बाण और धनुष का आशीर्वाद प्राप्त किया था। इन बाणों की शक्ति के कारण बर्बरीक इतने अधिक शक्तिशाली थे की बर्बरीक तीनों लोकों को जीत सकें।

महाभारत के युद्ध में भूमिका

महाभारत की कथा के अनुसार महाभारत के युद्ध की शुरुआत से पहले बर्बरीक ने अपनी माता को वचन दिया था की बर्बरीक हमेशा हारने वाली पक्ष का ही साथ देंगे। जब महाभारत के युद्ध के मैदान में बर्बरीक ने प्रवेश किया था तब भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को देखा था और बर्बरीक की शक्ति को पहचान लिया था। भगवान कृष्ण ने बर्बरीक से पूछा की “तुम किस पक्ष का समर्थन करोगे?

बर्बरीक ने भगवान कृष्ण को उत्तर दिया की बर्बरीक हारने वाले पक्ष का साथ देंगे। भगवान कृष्ण इस बात को अच्छी तरह से जानते थे की बर्बरीक की शक्ति इतनी ज्यादा थी की वह शक्ति अकेले ही इस महाभारत युद्ध का परिणाम बदल सकती थी। यदि बर्बरीक हारने वाले पक्ष का समर्थन करते तब यह चक्र कभी भी समाप्त न होता। क्योंकि पक्ष बदलने के बाद ही बर्बरीक अपना पक्ष बदलते।

श्रीकृष्ण की परीक्षा और बलिदान

भगवान कृष्ण ने बर्बरीक की परीक्षा लेने का निर्णय लिया था। भगवान कृष्ण ने एक ब्राह्मण का वेश धारण करके बर्बरीक से पूछा की “यदि तुम इतने ही शक्तिशाली हो तो क्या तुम मुझे अपनी वीरता का प्रमाण दे सकते हो?

बर्बरीक ने अत्यंत विनम्रता से कहा की “प्रभु, मेरी वीरता का प्रमाण तभी हो सकता हैं जब मैं महाभारत के युद्ध में भाग लूँ।” तभी भगवान कृष्ण ने बर्बरीक से दान स्वरुप उनका शीश मांगा। उन्होंगे बिना किसी झिझक के अपना शीश दान करने का वचन दिया था।

शीश का चमत्कार

बर्बरीक ने अपनी भक्ति और गुरु-कृपा के बल पर श्रीकृष्ण को अपना शीश दान किया था। बर्बरीक का शीश महाभारत के युद्ध के दौरान एक ऊंचे स्थान पर रखा गया था। ताकि बर्बरीक पूरे युद्ध को अच्छी तरह से देख सकें।

भगवान कृष्ण ने महाभारत के युद्ध के बाद बर्बरीक के बलिदान और उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर बर्बरीक को वरदान दिया था की “कलियुग में तुम श्याम नाम से पूजे जाओगे। तुम्हारे नाम का जाप करने वाले भक्तों की सभी इच्छाएँ पूर्ण होंगी। जो भी सच्चे मन से तुम्हें याद करेगा, तुम उसके लिए ‘हारे का सहारा’ बनोगे।

खाटू श्याम जी का उद्भव

कालांतर में खाटू गाँव में बर्बरीक का शीश प्राप्त किया गया था। इसी स्थान पर एक भव्य मंदिर बनाया गया था की जिसे आज “खाटू श्याम मंदिर” के नाम से जानते हैं। खाटू श्याम जी की कहानी भगवान के प्रति अटूट शक्ति, बलिदान और करुणा का प्रतीक माना जाता हैं।

बर्बरीक की कथा हमें सिखलाती हैं निस्वार्थ भक्ति और समर्पण का फल हमें जरुर मिलता हैं। आज खाटू श्याम जी को “हारे का सहारा” कहते हैं जो हर भक्त के संकट का निवारण करते हैं। अब हम आपसे चर्चा करेंगे खाटू श्याम मंदिर की पूजा के बारे में।

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खाटू श्याम मंदिर की पूजा- Khatu Shyam mandir ki pooja

अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं खाटू श्याम मंदिर की पूजा के बारे में। अब हम आपसे खाटू श्याम मंदिर की पूजा के बारे में बात करें तो भक्तों के लिए खाटू श्याम मंदिर की पूजा एक दिव्य और आनंदमय अनुभव हैं।

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भक्तों की आस्था और समर्पण को खाटू श्याम मंदिर की पूजा विधि और रीति-रिवाज़ और भी गहरा कर देते हैं।

खाटू श्याम जी की पूजा विधि

  • मंगला आरती:- मंगला आरती सुबह सूर्योदय से पहले होती हैं। दिन की शुरुआत के लिए मंगला आरती में बाबा श्याम का स्वागत किया जाता हैं। दिन के समय श्याम बाबा के दर्शन बहुत शुभ माने जाते हैं।
  • श्रृंगार पूजा:- बाबा श्याम का श्रृंगार मंगला आरती के बाद किया जाता हैं। इसके बाद श्याम बाबा को सुंदर वस्त्र और आभूषण पहनाए जाते हैं। गुलाब और अन्य फूलों की माला श्याम बाबा को चढ़ाई जाती हैं।
  • दोपहर की भोग आरती:- बाबा श्याम को दोपहर में अलग-अलग प्रकार के भोग अर्पित किए जाते हैं। खाटू श्याम मंदिर में खीर, चूरमा और अन्य मिठाइयाँ प्रसाद के रुप में चढ़ाई जाती हैं।
  • संध्या आरती:- सूर्यास्त के समय संध्या आरती होती हैं। संध्या आरती में भक्तजन भजन-कीर्तन और श्याम बाबा के जयकारे लगाते हैं।
  • विशेष पूजा:- किसी विशेष मन्नत के लिए अगर भक्त यहाँ आते हैं तो भक्त श्याम बाबा को नारियल, काले तिल और लड्डू अर्पित करते हैं। श्याम बाबा के चरणों में गुलाब की माला चढ़ाने का भी अनोखा महत्तव हैं।
  • विश्राम आरती:- विश्राम आरती दिन की अंतिम आरती होती हैं। दिनभर की पूजा के बाद श्याम बाबा को आराम दिया जाता हैं।

खास त्योहारों की पूजा

  • फाल्गुन मेला:- लाखों श्रद्धालु भक्त फाल्गुन के महीने में खाटू श्याम जी के दर्शन करने के लिए आते हैं। इसी दौरान खाटू श्याम मंदिर में विशेष पूजा और भंडारे का आयोजन होता हैं।
  • पदयात्रा:- श्रद्धालु भक्त खाटू श्याम मंदिर तक पैदल चलकर पहुँचते हैं। बाबा श्याम का नाम लेकर पदयात्रा में भजन गाए जाते हैं।

प्रसाद चढ़ाने का महत्तव

श्याम बाबा को खीर और चूरमा सबसे ज्यादा प्रिय हैं। खाटू श्याम मंदिर में नारियल और काले तिल अर्पण करके अपनी मनोकामना पूर्ण होने की प्रार्थना की जाती हैं।

भजन और कीर्तन

भजन-कीर्तन का श्याम बाबा की पूजा में विशेष महत्तव हैं। भक्तों के बीच “श्याम तेरे हज़ारों नाम“, “हारे का सहारा” और “श्याम की ज्योत जलाए रखो” जैसे भजन अधिक लोकप्रिय हैं।

खाटू श्याम जी का आशीर्वाद

भक्तों को खाटू श्याम मंदिर की पूजा और दर्शन से मानसिक शांति और सुख-समृद्धि प्राप्त होती हैं। खाटू श्याम मंदिर भक्तों के लिए आस्था, विश्वास और समर्पण का प्रतीक होता हैं।

आवश्यक जानकारी:- भैरव की कथा

निष्कर्ष- Conclusion

ये हैं खाटू श्याम मंदिर से संबंधित जानकारियाँ हम आपसे आशा करते हैं की आपको जरुर पसंद आई होगी। जानकारी पसंद आने पर जानकारी को लाइक व कमेंट जरुर करें।

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