महाभारत के (Arjun) युद्ध में पार्थ – महान धनुर्धर गांडीवधारी कुंती पुत्र अर्जुन की कहानी

Vineet Bansal

आज हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं महान धनुर्धर अर्जुन के बारे में। अब हम आपसे महाभारत के युद्ध में महान धनुर्धर अर्जुन के बारे में बात करें तो महाभारत के युद्ध में अर्जुन को भगवान नारायण के रक्षक के रुप में देखा जाता हैं।

महाभारत में महान धनुर्धर अर्जुन को इंद्रदेव का पुत्र माना जाता हैं। गांडीवधारी अर्जुन भगवान इंद्र के पुत्र और पांडु और कुंती के तीसरे पुत्र थे। महान धनुर्धर अर्जुन का जन्म कुंती के इंद्र मंच के उच्चारण से हुआ था।

गांडीवधारी अर्जुन न केवल एक महान योद्धा थे, बल्कि गांडीवधारी अर्जुन आदर्श पुरुष, मित्र, शिष्य और भाई के रुप में जाने जाते हैं। अब हम आपसे चर्चा करेंगे महाभारत में अर्जुन किसका अवतार था? 

महाभारत में अर्जुन किसका अवतार था? – Mahabharat me Arjun kiska Avtaar Tha

अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं महाभारत में अर्जुन किसका अवतार था? महाभारत में गांडीवधारी अर्जुन को भगवान नारायण के रक्षक के रुप में देखा जाता हैं। गांडीवधारी अर्जुन को इंद्रदेव का पुत्र माना जाता हैं।

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अर्जुन को विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण के सहायक के रुप में एक महत्तवपूर्ण भूमिका निभाने के लिए चुना गया था। पौराणिक कथाओं में यह कहा जाता हैं की महान धनुर्धर अर्जुन मृग का अवतार थे। 

भगवान विष्णु के चार प्रसिद्ध अवतारों में नर और नारायण मुनि उपस्थित हैं। ऐसा कहा जाता हैं की अर्जुन का जन्म नर अवतार के रुप में हुआ था जबकि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म नारायण अवतार के रुप में हुआ था।

महान धनुर्धर अर्जुन को नर अवतार माना जाता हैं जो भगवान श्रीकृष्ण के साथ मिलकर पृथ्वी पर धर्म की स्थापक के लिए मददगार हैं। भगवान श्रीकृष्ण का अर्जुन के साथ संबंध और महाभारत की कहानियाँ इस विचार को और अधिक गहराई और अर्थ प्रदान करते हैं।

इससे यह स्पष्ट होता हैं की अर्जुन केवल एक महान योद्धा ही नहीं बल्कि धर्म और सत्य की रक्षा के लिए भगवान की योजना का एक महत्तवपूर्ण हिस्सा भी हुआ करते थे। अब हम आपसे चर्चा करेंगे महाभारत में अर्जुन के बारे में। 

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महाभारत में अर्जुन – Mahabharat me Arjun

अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं महाभारत में अर्जुन के बारे में। अब हम आपसे महाभारत में अर्जुन के बारे में बात करें तो महाभारत में महान धर्नुधर अर्जुन पांडवों में से एक प्रमुख योद्धा थे।

Mahbharat me Arjun

महाभारत में अर्जुन महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित इस महाकाव्य के मुख्य पात्र भी थे। गांडीवधारी अर्जुन भगवान इंद्र के पुत्र और पांडु और कुंती के तीसरे पुत्र थे।

महान धनुर्धर अर्जुन का जन्म कुंती के इंद्र मंत्र के उच्चारण से हुआ था। इसके कारण महान धनुर्धर अर्जुन को इंद्र का वरदान प्राप्त था। जो अर्जुन को एक महान धनुर्धर बनाता हैं। 

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अर्जुन के कुछ प्रमुख गुण और विशेषताएँ – Arjun ki kuch Viseshtayen

Mahabharat me arjun ki viseshta

  • महान धनुर्धर:- महान धनुर्धर अर्जुन को ‘गांडीव’ नामक धनुष और ‘अक्षय तुनीर‘ प्राप्त था। इससे अर्जुन के पास असीमित बाणों की शक्ति थी। महान धनुर्धर अर्जुन एक अजेय योद्धा माने जाते थे और अर्जुन ने द्रौपदी के स्वयंवर में मछली की आँख में तीर मारकर द्रौपदी से विवाह किया था। 
  • श्रीकृष्ण के मित्र और सखा:- महान धनुर्धर अर्जुन और भगवान श्रीकृष्ण के बीच एक अनोखी मित्रता थी। महाभारत के युद्ध के दौरान अर्जुन का सारथी बनने वाले श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। अर्जुन महाभारत का एक महत्तवपूर्ण अंश हैं। 
  • न्याय और धर्म के प्रति समर्पित:- महान धनुर्धर अर्जुन को धर्म और न्याय के प्रति बहुत समर्पण था। अर्जुन हमेशा अपने कर्तव्यों और धर्म के मार्ग पर चलने का प्रयास करते थे। इसी कारण से अर्जुन ने कुरुक्षेत्र के युद्ध में अपने भाइयों का साथ दिया था। 
  • महाभारत युद्ध में भूमिका:- महाभारत युद्ध में पांडवों के सबसे प्रमुख योद्धा अर्जुन थे। अर्जुन ने कई महायोद्धाओं को परास्त किया था। जैसे की भीष्म, दानवीर कर्ण और गुरु द्रोणाचार्य। अर्जुन के सारथी श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन में अर्जुन ने युद्ध के कई निर्णायक क्षणों में महत्तवपूर्ण भूमिका निभाई थी। 
  • गीता का श्रोता:- भगवदगीता महाभारत का एक महत्तवपूर्ण हिस्सा हैं। भगवदगीता अर्जुन और श्रीकृष्ण के संवाद पर आधारित हैं। जब महाभारत के युद्ध के दौरान अर्जुन ने युद्ध के मैदान में अपने संगे-संबंधियों को देखा था तब अर्जुन अपने संगे-संबंधियों के विरुद्ध युद्ध करने से हिचकिचा रहे थे। तभी भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जीवन, कर्म और धर्म के गहरे रहस्यों का उपदेश दिया था। इससे अर्जुन ने अपने शक को दूर कर युद्ध में भाग लेने का निर्णय लिया था। 

महाभारत में अर्जुन का चरित्र आदर्श योद्धा, आदर्श मित्र और धर्म के प्रति समर्पण का प्रतीक हैं। अर्जुन का जीवन और अर्जुन के कृत्य महाभारत के पाठकों को नैतिकता, धर्म और कर्तव्य का पालन करने की प्रेरणा देते हैं। अब हम आपसे चर्चा करेंगे महाभारत के युद्ध में अर्जुन के योगदान के बारे में। 

महाभारत के युद्ध में अर्जुन का योगदान – Mahabharat ke yuddh me Arjun ka Yogdaan

अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं महाभारत के युद्ध में अर्जुन के योगदान के बारे में। अब हम आपसे महाभारत के युद्ध में अर्जुन के योगदान के बारे में बात करें तो महाभारत के युद्ध में अर्जुन का योगदान अत्यंत महत्तवपूर्ण था।

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महान धनुर्धर अर्जुन पांडवों के प्रमुख योद्धा थे। युद्ध की कई महत्तवपूर्ण घटनाओं में अर्जुन की भूमिका रही थी। अर्जुन का योगदान निम्नलिखित मुख्य बिंदुओं में साझा जा सकता हैं:- 

महान धनुर्धर और मुख्य योद्धा 

महाभारत के सबसे महान धनुर्धर अर्जुन थे। अर्जुन के पास दिव्यस्त्रों का व्यापक ज्ञान और क्षमता थी। महान धनुर्धर अर्जुन के पास गांडीव धनुष और अक्षय तुनीर था। इससे अर्जुन युद्ध में अजेय थे। कौशल और शक्ति महाभारत के युद्ध में पांडवों को कई महत्तवपूर्ण विजय दिलाई थी। 

भीष्म को परास्त करना 

अर्जुन ने महाभारत के युद्ध के दसवें दिन कुरुक्षेत्र के महान योद्धा और कौरवों के सेनापति भीष्म पितामह को परास्त किया था। भीष्म पितामह ने स्वयं अर्जुन को कहा था की भीष्म पितामह को पराजित करने का एकमात्र तरीका था की अर्जुन ने भीष्म को ऐसे समय पर मारना होना जब वह अपने हथियार छोड़ चुके हो।

श्रीकृष्ण के परामर्श से अर्जुन ने भीष्म के सामने शिखंडी को रखा। इससे भीष्म ने अपने हथियार त्याग दिए। अर्जुन ने भीष्म को बाणों की शैय्या पर लिटा दिया। 

जयद्रथ वध 

अर्जुन ने अपने पुत्र अभिमन्यु की मृत्यु का बदला लेने के लिए महाभारत के युद्ध के 14 वें दिन जयद्रथ को मारने की प्रतिज्ञा की थी। कौरवों ने जयद्रथ की रक्षा करने के लिए पूरे दिन अर्जुन को रोकने का प्रयास किया था।

लेकिन श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन और अपने महान युद्ध क्षमता के बल पर अर्जुन ने सूर्यास्त होने से पहले जयद्रथ का वध किया था। 

कर्ण को परास्त करना 

महाभारत के युद्ध के 17वें दिन अर्जुन ने अपने प्रमुख प्रतिद्वंद्वी कर्ण को परास्त किया था। कर्ण कौरवों का एक शक्तिशाली योद्धा था। कर्ण अर्जुन के समान ही महान धनुर्धर था। कर्ण के साथ अर्जुन की प्रतिस्पर्धा व्यक्तिगत थी।

श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन में अर्जुन ने वह वक्त चुना जब कर्ण का रथ कीचड़ में फंस गया था और कर्ण के हथियार डाल दिए थे। उसी समय अर्जुन ने कर्ण का वध किया था। 

द्रोणाचार्य की मृत्यु 

महाभारत के युद्ध के दौरान अर्जुन ने गुरु द्रोणाचार्य के मृत्यु के दिन भी महत्तवपूर्ण भूमिका निभाई थी। अर्जुन ने गुरु द्रोणाचार्य के साथ कई युद्ध किए थे। अर्जुन ने गुरु द्रोणाचार्य को अपने युद्ध कौशल से गुरु द्रोणाचार्य को हतोत्साहित किया था। 

अश्वत्थामा का सामना 

महाभारत के युद्ध के अंतिम दिनों में अर्जुन ने अश्वत्थामा के साथ युद्ध किया था। अश्वत्थामा ने पांडवों के शिविर पर रात के वक्त आक्रमण कर दिया था। अश्वत्थामा ने पांडवों के कई योद्धाओं को मार डाला था।

अर्जुन ने अश्वत्थामा को रोकने का बहुत प्रयास किया था। बाद में अर्जुन ने अश्वत्थामा को पराजित किया था। अब हम आपसे चर्चा करेंगे महाभारत में अर्जुन के चरित्र के बारे में। 

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महाभारत में अर्जुन का चरित्र चित्रण – Mahabharat me Arjun Ka Charitra Chitran

अब हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं महाभारत में अर्जुन के चरित्र के बारे में। अब हम आपसे महाभारत में अर्जुन के चरित्र के बारे में बात करें तो महाभारत में अर्जुन का चरित्र अत्यंत महत्तवपूर्ण हैं।

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महान धनुर्धर अर्जुन न सिर्फ एक महान योद्धा थे बल्कि अर्जुन आदर्श पुरुष, मित्र, शिष्य और भाई के रुप में जाने जाते हैं। महाभारत में अर्जुन का चरित्र निम्नलिखित हैं:- 

महान धनुर्धर और योद्धा 

गांडीवधारी अर्जुन को सबसे महान धनुर्धर माना जाता हैं। अर्जुन धनुष और बाण की कला में निपुण थे। अर्जुन ने भगवान शिव से पाशुपतास्त्र का वरदान प्राप्त था।

अर्जुन का कौशल और युद्ध तकनीक अर्जुन को कुरुक्षेत्र के युद्ध में एक महत्तवपूर्ण योद्धा बनाती हैं। अर्जुन की प्रतिभा और शक्ति ने पांडवों को कई बार संकट से बचाया था। 

धर्म और कर्तव्य के प्रति समर्पण 

अर्जुन अपने कर्तव्यों और धर्म के प्रति अधिक समर्पित थे। अर्जुन हमेशा धर्म का पालन करने और सत्य की राह पर चलने की कोशिश करते थे।

महाभारत के युद्ध के वक्त जब अर्जुन को अपने ही रिश्तेदारों के विरुद्धा युद्ध करना पड़ा था तब अर्जुन ने अपने धर्म का पालन करते हुए युद्ध में भाग लिया था। अर्जुन को भगवान कृष्ण ने गीता के माध्यम से अर्जुन को समझाया था। 

भगवान कृष्ण के मित्र और सखा 

अर्जुन और श्रीकृष्ण के बीच गहरी मित्रता और प्रेम था। श्रीकृष्ण ने अर्जुन के सारथी बनकर अर्जुन को न केवल युद्ध के दौरान दिशा-निर्देश दिए बल्कि हर कदम पर अर्जुन का साथ भी दिया था।

कृष्ण को अर्जुन ने अपना मित्र, गुरु और मार्गदर्शक माना और कृष्ण पर अटूट विश्वास रखा था। 

शिष्य के रुप में आदर्श 

अर्जुन अपने गुरु द्रोणाचार्य के प्रति अधिक समर्पित और विनम्र थे। अर्जुन ने अपने गुरु द्रोणाचार्य की शिक्षा को सर्वोपरि माना था।

अर्जुन अपनी शिक्षा के प्रति इतने निष्ठावान थे की अर्जुन ने अंधेरे में भी तीरंदाजी का अभ्यास किया था ताकि अर्जुन और ज्यादा कुशल हो सकें। 

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निष्कर्ष 

ये हैं महान धनुर्धर अर्जुन से संबंधित जानकारियाँ हम आपसे आशा करते हैं की आपको जरुर पसंद आई होगी। जानकारी पसंद आने पर जानकारी को लाइक व कमेंट जरुर करें।

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