आज हम आपसे चर्चा करने जा रहे हैं चिड़ियाँ फिल्म के बारे में। अब हम आपसे चिड़ियाँ फिल्म के बारे में बात करें तो लंबे समय बाद हिंदी सिनेमा में एक ऐसी फिल्म देखने को मिली हैं जिसका एक-एक सीन आपको इमोशनल कर देगा। इसके साथ के साथ कहानी इतनी गहरी की दिल को छू लेगी।
पहली ही फिल्म में लेखक और निर्देशन के तौर पर मेहरान अमरोही में छक्का लगाया हैं। चिड़ियाँ फिल्म दो बच्चे शानू और बुआ की कहानी हैं। इस फिल्म को बनाने में 8 साल लग गए हैं।
बॉक्स ऑफिस ऐसी अच्छी फिल्मों की प्रतीक्षा में हैं जिसमें कहानी, संदेश के साथ ही मनोरंजन भी हो। चिड़ियाँ फिल्म इन सब मानकों पर खरी उतरती हैं। कमर्शियल फिल्मों की चमक से दूर इस इंडिपेडेंट फिल्म को रिलीज़ होने में आठ साल का समय लगा हैं।
बच्चों को मिलता हैं स्पॉट ब्वॉय का काम- Bachchon ko milta hain spot boy ka kam
इस फिल्म की कहानी की शुरुआत होती हैं मुम्बई में रहने वाले दो बच्चों शानू और बुआ से जिनके सिर से पिता का साया उठ चुका हैं। इन पैसों के अभाव में पढ़ाई भी छूट गई हैं। माँ वैष्णवी साड़ियों में फाल लगाने का काम करती हैं।
माँ वैष्णवी चाहती हैं की शानू और बुआ काम पर लग जाए। पति के बड़े भाई बाली से कहकर माँ वैष्णवी उन्हें फिल्म शूटिंग की जगह पर स्पाट ब्वॉय के काम पर लगवाती हैं। हाथ में रैकेट पकड़ने की चाह रखने वाले बच्चों के हाथों में चाय की ट्रे भी आ जाती हैं।
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अपने सपनों को छोड़कर नौकरी पर जाना पड़ता हैं- Apne sapanon ko chhodkar naukari par jana padta hain
एक दिन सेट पर दोनों बच्चे को श्रेयस तलपड़े बैडमिंटन खेलते देख लेते हैं। श्रेयस तलपड़े उन दोनों बच्चों को बैडमिंटन की चिड़ियाँ यानी की शटल कॉक देते हैं।
उसके बाद उस फिल्म की शुरुआत होती हैं खेलने के मैदान से लेकर बैडमिंटन रैकेट खरीदने और उसकी जाली यानी की नेट बनाने की जद्दोजहद। लेकिन इसी बीच फिर नौकरी पर जाना पड़ता हैं।
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दिल को छू लेती हैं चिड़ियाँ की कहानी- Dil ko chhoo leti hai chidiya ki kahani
चिड़ियाँ फिल्म बेहद साधारण लेकिन दिल को छू लेने वाली फिल्म हैं। यह पहली फिल्म मेहरान अमरोही की बतौर लेखक और निर्देशक हैं। मेहरान ने यह बताया था की उन्होंने निर्देशन नहीं सीखा हैं। यह फिल्म आठ साल पुरानी हैं लेकिन इस फिल्म को देखते हुए आपको कहीं से भी इस बात का अहसास नहीं होता हैं।
यह फिल्म एक ताज़ी हवा के झोंके जैसी लगती हैं जो जीवन का पाठ सिखाती हैं की उम्मीद का दामन न छोड़ें। खेलना तो बच्चों की सबसे सस्ती खुशी हैं जो उन्हें नसीब नहीं होती हैं। फिर भी वह कोशिश करते रहते हैं। बच्चों के सिर पर पिता न होना क्या होता हैं, वह हर सीन में मेहरान अनुभव कराते हैं।
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निष्कर्ष- Conclusion
ये हैं चिड़ियाँ फिल्म से संबंधित जानकारियाँ हम आपसे आशा करते हैं की आपको जरुर पसंद आई होगी। इस जानकारी से आपको चिड़ियाँ फिल्म की कहानी के बारे में बहुत कुछ पता चल गया होगा। इस जानकारी से आपको इस फिल्म के बारे में हर प्रकार की जानकारी पता चल जाएगी।
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